Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jun 2017 · 5 min read

मौन

मौन-समस्या या समाधान

“अरे!अब कुछ बोलोगी भी या नहीं|तुम्हारी यह चुप्पी मेरे तन बदन में आग लगा देती है|”रमेश चिल्लाये जा रहा था,पर रीमा थी कि आँखों में आँसू लिये चुपचाप खाना लगाने लगी|नन्हा राघव नये कपड़े पहने हुआ था और ऐसे ही जूते पहने हुए पास ही पलंग पर लिटाया गया था|अभी आधा घंटा पहले हो रहे उसके विलाप को गहरी नींद ने मौन में बदल दिया था|बेचारा बच्चा रो रो के सो गया था|पर रीमा न तो रो सकती थी,और न ही पति के आने से पहले सो सकती थी,आखिर बचपन से डाले गये संस्कार अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे थे|रमेश ने आज बाहर खाने पर ले जाने का वायदा नन्हें राघव से किया था|पर हमेशा की तरह शायद उसकी मित्र मंडली या उसके बॉस का आग्रह राघव से किये वायदे पर बीस पड़ गया था|रमेश एक मिलनसार व्यक्ति था और अपने दोस्तों या सीनियर्स का आग्रह वह कभी नहीं ठुकराता था|और ये आग्रह करने वाले भी बड़े चालाक थे,रमेश की तारीफों के पुल बाँध के मुफ्त में पार्टी करने वाले जानते थे कि रमेश कभी मना नहीं करेगा|लेकिन वे यह नहीं जानते थे कि उनकी ये मुफ्त की पार्टी मुफ्त में ही किसी परिवार की खुशियों में बारूद भर रही है और किसी भी वक्त एक छोटी सी चिंगारी भी इस परिवार को विस्फोट से उड़ा सकती है|
वह तो रीमा बहुत ही शान्त और समायोजन करने वाली महिला थी,जिसने हमेशा मुस्कुरा कर अपना समय दूसरों को बाँटने वाले अपने पति का साथ दिया|रमेश अपनी पत्नी के इस शान्त स्वभाव का कायल था और इसी की डींगे हाँककर वह कभी कभी और भी अतिरिक्त समय लेट नाइट पार्टी में देता था|लेकिन राघव के आने के बाद रीमा के लिए अपना यही स्वभाव फाँसी का फन्दा बनने लगा|अपने लिए कम हुए समय को तो उसने अपने स्वभाव से झेल लिया था,पर बेटे की परवरिश में आने वाली मुश्किलों ने उसके स्वभाव में थोड़ा अन्तर कर दिया था|मुस्कुरा कर चुप रह जाने वाली रीमा,चुप तो अब भी रहती थी,लेकिन अब मुस्कुराहट की बजाय मौन आँसू उसका साथ देते थे|बोलना उसने अब भी नहीं सीखा था,या वही संस्कारों की बेड़ी थी जो अपने घर की सुख शान्ति के लिए उसे चुप करा देती थी|रमेश को उसका आँसू वाला मौन बहुत सालता था|शायद उसका अपराध बोध उसे कचोटता हो पर उसका पुरुष दंभ अपने को अपराधी न मानकर रीमा को ही लताड़ता|
रमेश ने एक नज़र नन्हें राघव पर डाली और फिर अपने ऑफिस बैग को पलंग पर पटक कर बाथरूम में चल दिया|रीमा ने तब तक खाना परोस दिया था और वहीं टेबल पर आज्ञाकारी सेवक की तरह बैठ गयी थी|उसके भीतर लावा सा उबल रहा था,उसका मौन अब उसकी साँसों पर भारी होने लगा था|तभी रमेश बाथरूम से निकला और बेडरूम में जाकर लेट गया|रीमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था,वह भूखी डायनिंग टेबल पर प्रतीक्षा कर रही थी और अपराधी आराम से बेडरूम में जाकर लेट गया था|रीमा ने पत्नी धर्म को प्राथमिकता देते हुए रमेश को खाने के लिए बुलाने का साहस जुटाया|वह दरवाजे पर ही खड़ी होकर भारी मन से यन्त्रवत बोली,”खाना खा लीजिए”
फिर क्या था,रमेश जोर से चिल्लाया,”ऐसी मनहूस सूरत लिये घूमती हो,कुछ बोलती नहीं,अब खाना खिलाने का ढोंग क्यों कर रही हो? तुम्हें मेरी परवाह कब से होने लगी?थक हार कर घर पहुँचो तो तुम्हारी रोनी सूरत ही देखने को मिलती है|आखिर तुम्हारी सुख सुविधाओं में कहाँ कमी छोड़ी है मैंने,पूरे दिन ऑफिस में मेहनत करता हूँ ताकि तुम्हारे आराम में कोई खलल नहीं पड़े|और बदले में मुझे क्या मिलता है,तुम्हारी रोनी सूरत? ठीक है कभी- कभार थोड़ा समय यार दोस्तों ने लिया तो क्या इतनी मेहनत के बाद में एन्जॉय भी नहीं कर सकता”आखिरी पंक्तियाँ बोलते समय रमेश रीमा से नजरें नहीं मिला पा रहा था और आवाज में भी हकलाहट थी|लेकिन रीमा अब भी चुप रही,बस उसके चेहरे पर न आँसू थे,न मुस्कुराहट|बस एक सपाट मौन|उसने फिर धीरे से उसी यन्त्रवत रूखी आवाज में बोला,”खाना खा लीजिए”
रमेश जल भुन गया और चीखा,”अरे इसके अलावा भी कुछ बोलोगी क्या? तुम्हारी यह आदत मुझे पागल कर देगी?क्या मुझे पता चलेगा कि मैंने तुम्हारे साथ क्या अन्याय किया है?जिसके लिए तुमने यूँ मुँह फुला रखा है|”रीमा की आँखों में आँसू भर आये उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अपराधी ने वकील बनकर उसे ही कटघरे में खड़ा कर दिया है,अब उसका मौन बहुत बड़ी समस्या बन गया था|मौन की कठोर दीवारें हिलने लगी थीं,पर अभी भी ढही नहीं थी|
रमेश को बेचैनी होने लगी,वह फिर बिफरा,”मुँह से कुछ बकोगी”
रीमा अचानक जोर से चिल्लायी,”क्या बकूँ…..क्या तुम नहीं जानते समस्या क्या है?….क्या वाकई तुमने मेरे और राघव की हर सुविधा का ध्यान रखा है?…..क्या कभी हमारे लिए समय मिला है तुम्हें?…दुःख हो या सुख तुम्हारे होते हुए भी अक्सर हम माँ बेटे को इंतजार में काटना पड़ता है|समय तो कट जायेगा पर जो वायदे करके तुम तोड़ते हो न उनकी किरचियाँ चुभती हैं मैंने तो जैसे तैसे झेल लिया पर बच्चा तड़पता है,रोता है,मायूस होता है तो देखा नहीं जाता|बस अब बहुत हुआ,मैं अब बर्दाश्त नहीं कर सकती|”रीमा ने गर्म लावा उगल दिया था,उसका चेहरा लाल हो गया था,वह हाँफ रही थी|लेकिन रमेश अवाक् था,जैसे लकवा मार गया हो,उसने शायद सपने में भी रीमा के ऐसे शब्दों की या ऐसे ज्वालामुखी रूप की कल्पना न की होगी|उसके दंभ को गहरी चोट लग गयी थी,वह माथा पकड़े वही बेड पर बैठा रहा|रीमा अब शान्त हो चुकी थी वह भी चुपचाप दरवाजे के पास बैठ गयी|एक अजीब सी शान्ति ने पूरे मकान को घेर लिया था|टेबल पर खाना चुप था,बिस्तर पर बच्चा शान्त था,कमरे में रमेश अवाक् था और चौखट पर बैठी रीमा भी मौन थी,इस सारी शान्ति ने दिन भर की थ की रीमा को कब गहरी नींद में सुला दिया,पता ही नहीं चला|सुबह राघव के रोने की आवाज सुनकर रीमा हड़बड़ाकर चौखट के पास से उठी,राघव ने कपड़े गीले कर दिये थे इसीलिए वह रो रहा था,रीमा ने उसके कपड़े बदले और बोतल में गुनगुना दूध डाल कर उसे पिलाया बच्चा फिर से सो गया|टेबल पर रात का खाना लगा हुआ था,बोझिल मन से रीमा ने सब कुछ समेटा|तभी रमेश के ऑफिस बैग में रखा फोन बज उठा,रीमा ने घड़ी की तरफ देखा सुबह के सात बज गये थे,रीमा ने फोन देखा ऑफिस से सिन्हा सर का था,जरूर कोई मीटिंग से रिलेटेड होगा वह तभी फोन करते हैं यही सोचती रीमा बेडरूम की तरफ बढ़ी|बेडरूम अन्दर से लॉक था,रीमा ने जोर जोर से दरवाजा खटखटाना शुरू किया,उसका दिल जोरों से धड़कने लगा|उसने जोर जोर से रमेश कह कह कर पुकारा,पर कोई हलचल नहीं हुई|वह भाग कर पड़ोस वाले दीक्षित जी को बुला लायी कॉलोनी में तब तक हलचल मच चुकी थी,किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था|आखिरकार बेडरूम का दरवाजा तोड़ा गया,रमेश की लाश पंखे से लटकी हुई थी|सुसाइड नोट साइड टेबल पर रखा हुआ था|जिसमें रात की पूरी कहानी थी पर लोगों के साथ साथ रीमा भी यह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर रमेश की आत्महत्या की वजह रीमा का मौन बना या उसका मुखर होना|
✍हेमा तिवारी भट्ट✍

Language: Hindi
487 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
नई पीढ़ी पूछेगी, पापा ये धोती क्या होती है…
नई पीढ़ी पूछेगी, पापा ये धोती क्या होती है…
Anand Kumar
मेरी सरलता की सीमा कोई नहीं जान पाता
मेरी सरलता की सीमा कोई नहीं जान पाता
Pramila sultan
कैसे प्रियवर मैं कहूँ,
कैसे प्रियवर मैं कहूँ,
sushil sarna
💐प्रेम कौतुक-465💐
💐प्रेम कौतुक-465💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
कोई इतना नहीं बलवान
कोई इतना नहीं बलवान
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
जहाँ करुणा दया प्रेम
जहाँ करुणा दया प्रेम
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
#कुदरत_केरंग
#कुदरत_केरंग
*Author प्रणय प्रभात*
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
श्री राम भक्ति सरिता (दोहावली)
श्री राम भक्ति सरिता (दोहावली)
Vishnu Prasad 'panchotiya'
मीठा गान
मीठा गान
rekha mohan
" भींगता बस मैं रहा "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
मां का आंचल(Happy mothers day)👨‍👩‍👧‍👧
मां का आंचल(Happy mothers day)👨‍👩‍👧‍👧
Ms.Ankit Halke jha
जिंदगी के कोरे कागज पर कलम की नोक ज्यादा तेज है...
जिंदगी के कोरे कागज पर कलम की नोक ज्यादा तेज है...
कवि दीपक बवेजा
इजहार ए मोहब्बत
इजहार ए मोहब्बत
साहित्य गौरव
बीज और विचित्रताओं पर कुछ बात
बीज और विचित्रताओं पर कुछ बात
Dr MusafiR BaithA
विराम चिह्न
विराम चिह्न
Neelam Sharma
*अगवा कर लिया है सूरज को बादलों ने...,*
*अगवा कर लिया है सूरज को बादलों ने...,*
AVINASH (Avi...) MEHRA
आपकी लिखावट भी यह दर्शा देती है कि आपकी बुद्धिमत्ता क्या है
आपकी लिखावट भी यह दर्शा देती है कि आपकी बुद्धिमत्ता क्या है
Rj Anand Prajapati
* प्यार की बातें *
* प्यार की बातें *
surenderpal vaidya
सांसों के सितार पर
सांसों के सितार पर
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी
महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी
Seema gupta,Alwar
टूटकर, बिखर कर फ़िर सवरना...
टूटकर, बिखर कर फ़िर सवरना...
Jyoti Khari
ऐसे नाराज़ अगर, होने लगोगे तुम हमसे
ऐसे नाराज़ अगर, होने लगोगे तुम हमसे
gurudeenverma198
एक कविता उनके लिए
एक कविता उनके लिए
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
कविताश्री
कविताश्री
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
World Book Day
World Book Day
Tushar Jagawat
🍁मंच🍁
🍁मंच🍁
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
23/04.छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
23/04.छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
कविता-शिश्कियाँ बेचैनियां अब सही जाती नहीं
कविता-शिश्कियाँ बेचैनियां अब सही जाती नहीं
Shyam Pandey
बच्चे (कुंडलिया )
बच्चे (कुंडलिया )
Ravi Prakash
Loading...