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20 Sep 2020 · 1 min read

मोहन राकेश की डायरी से

हवा में वासंती स्पर्श है-समय अच्छा-अच्छा लगता है।ऐसे में अनायास मन होता है कि हल्के-हल्के स्वर में किसी से बात करें।अपने चारों ओर घर की मिठास,घर की उष्णता हो।किसी के हाथ की चाय लाकर दे,और प्याली के साथ वह हाथ भी थाम ले।हल्का-सा खिंचाव हो और ओठ मदिर मुस्कुराहट से फैल जाएं।परंतु ये सब कैसे हो?..जिससे इस सबकी आशा की थी,सामने तो उस दिन रेखा खींच दी।जिससे वस्तुत: आशा की पूर्ति संभव है,उसके अपने बंधन है,अपने दायित्व है,एक भरा पूरा घर है,जहां उसे अपना एक निश्चित रोल अदा करना होता है।
मोहन राकेश की डायरी से..
मनोज शर्मा

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 192 Views
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