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24 Apr 2021 · 1 min read

मोबाइल ने छीनी रूबरू मुलाकातें

मोबाइल ने छीनी जबसे रूबरू मुलाकातें ,
ना वो दीवानगी ,बेताबी ना ही वो चाहते ।

उन मुलाकातों की बात ही कुछ और थी ,
दीदार का बहाना ना देखता था दिन- रातें ।

बस एक झलक मिल जाए अपने प्यारे की,
बहुत दिनों से मिला नहीं जान लूं खैरियतें।

पहले कहां थी वक्त की कोई पाबंदी ,दोस्तों!
जब भी कभी जी चाहा कर ली मुलाकातें।

वक्त तो होता था दो दिलों की गिरफ्त में ,
दीदार के संग-संग कर लो बेशुमार बातें।

चलिए छोड़िए जनाब !गुजर गए वो ज़माने,
अब रह कहां गई इंसानों में वैसी मुहोबतेँ ।

“अनु” को अक्सर याद आता है वही जमाना ,
लौट के आजाएं फिर से खुदाया वही मुलाकातें ।

2 Likes · 2 Comments · 263 Views
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