‘मोड़ दो रुख’
मोड़ दो रुख हवाओं का
गर बाधा बन बहने लगें।
फूँक दो मंत्र कानों में
लबों पर शब्द बहने लगें।
झुकें न वे जो झुकते हैं
थकें न वे जो थकते हैं।
वीर ज़ुुल्मी बयारों से,
न रुकते थे न रुकते हैं।
तरुणाई, पौरुष, वीरता
ज़िन्दगी में जिनकी सदा।
अद्भुत शक्ति वीरों की
शिष्टता है उनकी अदा।
नस-नस से उत्तेजित हों
‘मयंक’ तन में अँगड़ाई हो।
मातृ-रक्षा देश से प्रेम
वीरगति से सगाई हो ।