मै भी भीग जाऊँ!!
मैं भी भीग जाऊँ।
……………………
सोचता हूँ एकबार
मैं भी भीग जाऊँ।
इस बरसात
प्रिय के साथ
घनी जुल्फों की छाव में
प्रियतम की बाहों में
फिर से समाजाऊँ
सोचता हूँ एकबार
मैं भी भीग जाऊँ।
प्रेम की पुकार
झिड़की भरी मनुहार
कभी मुस्कुराना
कभी रुठ जाना
रूठे को मनाऊँ फिर से प्रेम सुधा बरसाऊँ
सोचता हूँ एकबार
मैं भी भीग जाऊँ।
अल्हड़ सी जवानी
हुश्न की रवानी
ओठो की ये लाली
जैसे मदीरा की प्याली
कैसे कर मैं , पी जाऊँ
सोचता हूँ एकबार
मैं भी भीग जाऊँ।
……
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
18/11/2017