मैकू रिक्शा चला रहा, कवि संदीप मिश्रा “सरस”
मित्रों, आदरणीय सरस जी की कविता , यथार्थ वाद व साम्यवाद से प्रभावित है। कविता में एक ऐसे किसान का वर्णन है ,वह अपने सपनों को भुलाकर, अपना खेत खलिहान बेचकर या गिरवी रखकर आजीविका हेतु रिक्शा चलाने को मजबूर है ।हमारे देश में विस्थापित परिवार की यही विडंबना है ।मेहनतकश किसान , खेती-बाड़ी से दूर हट कर, अपने परिवार के जीवन यापन के लिए शहरों में रिक्शा आदि साधन अपनाने पर मजबूर है। उसका पसीना जो अपनी कृषि हेतु निकलना चाहिये ,वह व्यापार में निकल रहा है।यही कवि की व्यथा का मर्म है। भाव संप्रेषण अद्भुत है, प्रवाह सहज है, और गेयता सहज प्रवाह युक्त है। संदीप सरस जी कविता की सहज रचना धर्मिता के लिये प्रसिद्ध हैं। उपरोक्त कविता के निर्वाहन हेतु वे बधाई के पात्र हैं।
डा. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।
01.02.2020