Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jul 2020 · 2 min read

मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?

जो बात कहने से भी डरते है सब
वो बात सबने कही
वो कहने से नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
जो तिरस्कार दिया अपनों ने
जिसकी कल्पना नही की सपने में
वो देने में नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
शर्म बेच बेशर्म हुये
धर्म के नाम पर अधर्म हुये
वो अधर्मी तब भी नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
सदाचार का झूठा पाठ पढ़ा
मनमानी करते रहे निरंतर
वो अनाचार से नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
हर रिश्ते में मर्यादा होती है
उन रिश्तों को तोड़ कर
वो अमर्यादित होने से नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
सारे गुनाह गलत होते हैं
फिर भी सब करते रहे
वो गुनाह करने से नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
डर का डर नही जिनको
कुकर्म जी भर करते रहे
वो उस डर से नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
निडर हो कर झूठ बोलें
सच को कदमों तले डालें
वो झूठ बोलने से नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
सबने अपनी हद पार की
आँखों की शर्म बेच दी
वो हद पार करने से नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
इसलिए की वो डराते हैं
अपने झूठ का भय दिखाते हैं
वो डराने से नही डरे
तो मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?
क्यों डरूँ क्यों डरूँ
तुम्ही बताओ मैं क्यों डरूँ
मैं सच लिखने से क्यों डरूँ ?

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 07/07/2020 )

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 175 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Mamta Singh Devaa
View all
You may also like:
खिल उठेगा जब बसंत गीत गाने आयेंगे
खिल उठेगा जब बसंत गीत गाने आयेंगे
Er. Sanjay Shrivastava
इश्क पहली दफा
इश्क पहली दफा
साहित्य गौरव
नहीं चाहता मैं यह
नहीं चाहता मैं यह
gurudeenverma198
तर्जनी आक्षेेप कर रही विभा पर
तर्जनी आक्षेेप कर रही विभा पर
Suryakant Dwivedi
अब किसपे श्रृंगार करूँ
अब किसपे श्रृंगार करूँ
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
निर्झरिणी है काव्य की, झर झर बहती जाय
निर्झरिणी है काव्य की, झर झर बहती जाय
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मुझे किराए का ही समझो,
मुझे किराए का ही समझो,
Sanjay ' शून्य'
कुत्ते
कुत्ते
Dr MusafiR BaithA
अब हम रोबोट हो चुके हैं 😢
अब हम रोबोट हो चुके हैं 😢
Rohit yadav
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
मेरे विचार
मेरे विचार
Anju
जिंदगी के तूफानों में हर पल चिराग लिए फिरता हूॅ॑
जिंदगी के तूफानों में हर पल चिराग लिए फिरता हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
चलना सिखाया आपने
चलना सिखाया आपने
लक्ष्मी सिंह
"पुरानी तस्वीरें"
Lohit Tamta
धोखा
धोखा
Paras Nath Jha
हर कभी ना माने
हर कभी ना माने
Dinesh Gupta
क़रार आये इन आँखों को तिरा दर्शन ज़रूरी है
क़रार आये इन आँखों को तिरा दर्शन ज़रूरी है
Sarfaraz Ahmed Aasee
👌👌👌
👌👌👌
*Author प्रणय प्रभात*
यूं ही नहीं हमने नज़र आपसे फेर ली हैं,
यूं ही नहीं हमने नज़र आपसे फेर ली हैं,
ओसमणी साहू 'ओश'
कहां गए बचपन के वो दिन
कहां गए बचपन के वो दिन
Yogendra Chaturwedi
चाहो न चाहो ये ज़िद है हमारी,
चाहो न चाहो ये ज़िद है हमारी,
Kanchan Alok Malu
*शादी के खर्चे बढ़े, महॅंगा होटल भोज(कुंडलिया)*
*शादी के खर्चे बढ़े, महॅंगा होटल भोज(कुंडलिया)*
Ravi Prakash
तोहमतें,रूसवाईयाँ तंज़ और तन्हाईयाँ
तोहमतें,रूसवाईयाँ तंज़ और तन्हाईयाँ
Shweta Soni
सूरज
सूरज
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
कुछ बात थी
कुछ बात थी
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
चाय-समौसा (हास्य)
चाय-समौसा (हास्य)
दुष्यन्त 'बाबा'
मुक्तक
मुक्तक
जगदीश शर्मा सहज
2323.पूर्णिका
2323.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
गुजरते लम्हों से कुछ पल तुम्हारे लिए चुरा लिए हमने,
गुजरते लम्हों से कुछ पल तुम्हारे लिए चुरा लिए हमने,
Hanuman Ramawat
भगतसिंह ने कहा था
भगतसिंह ने कहा था
Shekhar Chandra Mitra
Loading...