मैं मैं हूँ, तुम तुम हो…..
कियूं करते हैं — अभिमान ! कियूं करते हैं — रोष !
क्या मिलता है ! अहं के मैं में ; व्यंग के कटुता में ?
मैं, मैं हूँ , वह, वह है , तुम , तुम हो |
मैं, वह, तुम —- हम हो नहीं सकते इस अभिशप्त जीवन में –
इस अहं , व्यंग , रोष काळ चक्र में ,मानसिकता के भ्रम में ||
मै मैं हूँ ….
प्रथक है – अहं , प्रथक है व्यंग प्रथक है
अभिमान –प्रथक है प्रथकता ||
मैं मैं हूँ …..
मैं , वह , तुम — जीवन के त्रिकाल हैं
आध्यात्मिकता , मानसिकता , भौतिकता का आधार है ||
मै मै हूँ …….
प्रथकता लोभ काया है प्रथकता माया जाल है
प्रथकता पाप पुंज है प्रथकता जीवन श्राप है ||
मै मै हूँ ….,
प्रथकता में एकता , जीवन अभिप्राय है
प्रथकता मै एकता जीवन अभिसार है
प्रथकता में एकता , जीवन अनुराग है
प्रथकता में एकता , जीवन ज्योति है ||
मै मै हूँ …….
प्रथकता में एकता , जीवन श्रंखला है
प्रथकता में एकता , ब्रह्मा की सृष्टि है
प्रथकता में एकता , विष्णु की क्रीड़ा है
प्रथकता में एकता , शिव का अभिप्रय है ||
मै मै हूँ ……