मैं भी …… ( ग़ज़ल )
दुआ है यह इंकलाब अब ज़ारी रहे ,
मैं भी ,मैं भी का शोर यह ज़ारी रहे .
गाँव-गाँव ,शहर-शहर में जो हैं पीड़ित ,
वोह भी उठायें आवाज़ ,क्यों खामोश रहें ,
कौन नहीं यहाँ जुल्मियों का सताया हुआ ,
सबके दिल में बदले की आग सुलगती रहे.
बस अब बहुत हो चुकी ज़ुल्म की इन्तेहा ,
क्यों मासूम जिंदगीयां घुट -घुट के रहे .
देश का अन्नदाता या कोई भी शोषित वर्ग,
व् नारियां ज़ुल्म के खिलाफ डटकर खड़ी रहे .
सुलगी है चाहे कहीं से भी ये अजब चिंगारी ,
दावानल बनकर ता-कयामत भड़कती रहे .
जब तक ना मिले जन-जन को सुख-चैन ,
ज़ुल्म का सफाया करने को आग जलती रहे .