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14 Nov 2020 · 1 min read

मैं गुज़रा हुआ वो ज़माना नहीं हूँ

मैं गुज़रा हुआ वो ज़माना नहीं हूँ
नदी का सिमटता किनारा नहीं हूँ

बहाना कोई भी बनाता नहीं हूँ
समझते हो जैसा मैं वैसा नहीं हूँ

तुझे हक़ नहीं इस तरह सोचने का
किसी और का हूँ मैं तेरा नहीं हूँ

जिये जा रहा हूँ मैं साँसों की धुन पर
हक़ीक़त हूँ कोई फ़साना नहीं हूँ

मुसलसल सहे रंजोग़म ज़िन्दगी के
मगर इम्तिहानों में हारा नहीं हूँ

मुझे कोई ओझल निगाहों से कर दे
मैं जर्रा तो हूँ पर वो जर्रा नहीं हूँ

मेरी ज़िन्दगी आइने सी है ‘आनन्द’
मैं चटका तो हूँ फिर भी बिखरा नहीं हूँ

– डॉ आनन्द किशोर

1 Like · 233 Views
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