मैं गंगा हूँ
मैं हूँ गंगा मीठेजल को तुम्हारे लिए लाई हूँ
प्रसन्न मन से कलकल बहती अब तक आई हूँ
नदियों से मिल अपना श्रंगार करती आई हूँ
मिलने पर नदियों के मैं उत्सव मनाती आई हूँ।
मैं हूँ गंगा मीठेजल को तुम्हारे लिए लाई हूँ।
ऊंचे पहाड़ों से निर्मल जल लिए लाई हूँ
अपने मे समाये जल को पवित्र करती आई हूँ
तुम्हारे लिए ही तो मैं पृथ्वी पर चलकर आई हूँ।
मैं हूँ गंगा मीठेजल को तुम्हारे लिए लाई हूँ।
पथरीले रास्तो से बहती चली मैं आ रही हूँ
तुह्मरे विश्वास को में सहेज कर चलती रही हूँ
निर्बाध गति लिए मैं सदियों से बहती रही हूँ।
मैं हूँ गंगा मीठेजल को तुम्हारे लिए लाई हूँ
पाप तुम्हारे अपने निर्मल जल से धोती आई हूँ
समान भाव से सबको स्नान कराती आई हूँ
मिलने की आशा से ही बहती चली आई हूँ।
मैं हूँ गंगा मीठेजल को तुम्हारे लिए लाई हूँ।
सबको अपने पवन जल से पवित्र करती आई हूँ
तुम आते रहो यूं ही में बहती चली आ रही हूँ
पवित्रता बनाये रखना बस चाहती आई हूँ।
मैं हूँ गंगा मीठेजल को तुम्हारे लिए लाई हूँ।
तुम्हारे ह्रदय में अपना स्थान बनाने आई हूँ
यूँ ही पूजनीय बनी रहूँ ये ही चाह लिए हूँ
मेरा जल यूं ही पवित्र रहे ये ही चाह लिए हूँ।