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14 Jan 2021 · 1 min read

मैं और तुम हैं साथ साथ चरखी और पतंग से

मैं और तुम हैं साथ साथ
चरखी और पतंग से…
बंध में बंधे हुए इसलिए सधे हुए
एक महीन तंग से…

जब भी तुम चाहती हो उड़ना
में देता हूं ढील कि तुम छू सको आसमां
और जब तुम बहक जाती हो उच्छृंखल होकर
तो खींच लेता हूं तुम्हे रफ्तार से…
चाहता है कोई काटना डोर से अगर
मैं समेट लेता हूं अंक में प्यार से….

तुम जब भी डोर को बंधन समझ लेती हो
और उन्मुक्त होकर उड़ जाती हो तोड़ के
मैं भी पड़ा रह जाता हूं कबाड़ बेकार…
तुम भी हो जाती हो बेजार और तार तार…

भारतेंद्र शर्मा
14.01.2021

Language: Hindi
4 Likes · 3 Comments · 393 Views
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