मैं ईश्वर समदर्शी हूँ
गगन भी मै धरा भी मै
अमृत और हवा भी मै
जग का हूँ मै पालनकर्ता
मै जीवन और अर्थी हूँ।
मै ईश्वर समदर्शी हू।।
चन्द्र भी मै सूरज भी मै
पर्वत और पनघट भी मै
हर एक जीव का मै रक्षक
मै सुख दुख का सार्थी हूँ।
मै ईश्वर समदर्शी हूँ।।
जीवन मै मृत्यु भी मै
गती और अवगती भी मैं
जीवन चक्र का मै चालक
साश्वत सत्य का पार्खी हूँ।
मैं ईश्वर समदर्शी हूँ।।
जल भी मै और थल भी मैं
आदि अनादि अनल भी मैं
सृष्टि का मै सृजन कर्ता
समय चक्र का चर्खी हूँ।
मैं ईश्वर समदर्शी हूँ।।
त्याग भी मैं बलिदान भी मैं
राग, द्वेष, अहंकार भी मैं
धर्म अधर्म की मै परिभाषा
धर्म भीरु परमार्थी हूँ।
मैं ईश्वर समदर्शी हूँ।।
राग भी मैं अनुराग भी मैं
बुद्धि विवेक, विज्ञान भी मैं
विज्ञाता विज्ञान विसारद
ज्ञान का मैं अभिब्यक्ति हूँ
मैं ईश्वर समदर्शी हूँ
तू भी मैं और मैं भी मैं
हम सब तुम सब सबकुछ मैं
मान अपमान का मै द्वैतक
मैं चरित्र पारदर्शी हूँ।
मैं ईश्वर समदर्शी हूँ।।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”