मैंने मन की सुंदरता को देखा है
मैंने मन की सुंदरता को देखा है
सबसे सुंदर अपना प्रियतम लगता है
देखो मुझको प्रिय का कितना प्यार मिला
मेरा गम उसकी आँखों से बहता है
भावों का लहराता जो मन में सागर
मीत मेरा मेरे चेहरे से पढ़ता है
समझ न पाई आज तलक मैं तो इतना
जितना मितवा ने इस मन को समझा है
प्यार ‘अर्चना’ है मेरा तीरथ मंदिर
उसमे ही मुझको अपना रब दिखता है
डॉ अर्चना गुप्ता