मेरे ख़ुदा मुझकों मिटा ( सूफियाना )
मैं बून्द हूँ
तेरे वजूद की
मेरे खुदा
तू रहा सागर मेरा
फिर क्यूँ
दूर हूँ
क्यों मजबूर हूँ
मेरी प्यास को
दिल की आँच को
सागर से भुजा…….
मैं चल दिया
अकेला
गुस्ताख़ बनकर
तुझसे जिस्म
लेकर
जिस्म ने ही
रूह को
अब कर दिया कैद सा
मेरे खुदा
इन जंजीरों से छुड़ा….
दुनियावी का
ख़्वाब लेकर
ख़ुमार लेकर
तेरा सन्देश लेकर में चला
अब ये स्वाद भी
हो रहा है
सज़ा
मेरे खुदा
मुझकों अपने में मिला…
मैं धूल बनकर
उड़ रहा हूँ
ए मौला अपनी
कब्र पर
मुझको हवा दे
फूंक से
मैं जा मिलूँ तेरे
नूर से ।
मैं बूँद हूँ
मेरे खुदा..
मैं तनहा पड़ा हूँ
इस जेल में
बन पतंगा जल रहा
इस खेल में
मुझको किनारे
सागर किनारे
क्यूँ कर दिया खड़ा
मेरे खुदा
मुझको सागर में मिला..
मैं ना अलग हूँ
तेरे रूप से
तेरे वजूद
मुझको यक़ीन है
तेरे प्रेम से
अब ना देर कर
ना अबेर कर
मुझको मिटा दे
अपने अस्तित्व से
मेरे ख़ुदा
मैं बूँद हूँ….