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12 Apr 2017 · 1 min read

मेरे हमसफ़र

एक आहट सी होती है,
तो लगता है कि तुम हो।

कोई खिड़की कही खुलती है
तो लगता है कि तुम हो।।

हो नही रु-ब-रु तो क्या मेरे,
सरीक-ए-हयात भी तुम हो।।

हो गयी हूं कुछ बेपरवाह सी,
खुद से,मेरी बरहम भी तुम हो।।

भटके हो दर-ब-दर शिकस्ता से
पैहम सफर-ए-जिस्त भी तुम हों।।

✍संध्या चतुर्वेदी।।
मथुरा यूपी

पैहम -लगातार
शिकस्ता- थका हुआ
बरहम -परवाह करने वाला
सफर ए जिस्त-जिंदगी का सफर
सरीके हयात-हमसफ़र

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