मेरे श्रद्धेय (कविता )
मेरे श्रद्धेय !
मेरे आदरणीय !
तुम पर प्रेम निस्सार है।
यह अमूल्य रत्न,
यह सभी सृजन ,
इन पर तुम्हारा ही अधिकार हैें।
तुम रहो चाहे जहाँ ,
यहाँ नहीं तो वहां ,
यह ह्रदय करता सदा पुकार हैें।
तुम्हारा मृदल स्वर ,
गीत-पुष्पों से भरे अधर ,
सुख देते मुझे अपार हें।
तुम्हारे स्नेह का हाथ ,
तुम्हारे गीतों का साथ ,
यह मेरे संघर्ष का औजार हैें।