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19 Mar 2020 · 1 min read

मेरे भारत में तुम्हारी नहीं चलने वाली

तुम्हारी कारगुजारी नहीं चलने वाली
काला धन कालाबजारी नहीं चलने वाली

गए वो दौर जो शोषण के चलाए तुमने
हुजूर अब नई पारी नहीं चलने वाली

खुली तिजोरी तो हँसते हुए बोली दौलत
तुम्हारे पीछे ये नारी नहीं चलने वाली

जिसे संजोया था तुमने बड़ी हिफाजत से
वो पाँच सौ वो हजारी नहीं चलने वाली

खड़ा है मुल्क एक साथ आज लड़ने को
तुम्हारी चाल शिकारी नहीं चलने वाली

सुनों आतंक के आकाओं बानी ‘संजय’ की
मेरे भारत में तुम्हारी नहीं चलने वाली

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