मेरे पंख
विधा – राधिका छंद
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मेरे पंख
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मत कुतरो मेरे पंख , यहीं जीवन है।
है पंख तो जीवन है, वरना मरण है।
उनमुक्त गगन की चाह, सदा ही मन में।
यूँ मुझ से मेरा प्राण , न छीनो क्षण में।
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यूँ बनों न तुम बलवान, कुतर पर मेरे।
कब मुझसे क्या नुकसान , बोल दो तेरे।
तुम पींजर में भी कैद , न करना हमको।
अब कनक कटोरी भाय , न मेरे मन को।
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तुम जीवन में अधियार , भरो ना मेरे।
वह अंबर रहे उदास , बिना अब मेरे।
हैं मुख में तेरे राम , पाप है मन में।
हम निरपराध की जान , हरो ना क्षण में।
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तुम करो जगत उपकार , भला हो तेरा।
है पंछी का आकाश , वहीं घर मेरा।
हैं पंख सलामत आज , सुखी जीवन है।
हे मानव कर उपकार , तुम्हें नमन है।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”