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1 Aug 2021 · 1 min read

मेरे दौर की सहेलियां

मेरे दौर की सहेलियां
आज भी मुहँ पर हाथ
रखकर बतियाती है,
कानों में फुसफुसाती है,
बगल में बैठ कर
चिकुटियाती हैं,
जब भी चार मिल जाती हैं
ठहाके गूजँते हैं—
और बड़ों के आते ही
फ़ौरन नमस्ते की मुद्रा में
आ जाती हैं—-
इमली,कैथा,कमरख
से लेकर गली,मोहल्ला
नुक्कड,चौराहा
चाचा,मामा,भईया
दीदी,कुल गप्पियाती हैं,
जीजा,जीजा कहकर
एक दूसरे के पतियों को
खूब चिढ़ाती है—-
जोडों का दर्द हो या
कमर का,गला खराब हो,
चाहे मोटापा साथ हो,
जोरदार ठुमके लगाती है,
गाती है,गुनगुनाती हैं,
उम्र से क्या लेना देना,
जब भी मिलती है,
१९,२० छोडिये —
कोई भी १५ के ऊपर
आज भी नज़र नहीं आती हैं|

Language: Hindi
14 Likes · 19 Comments · 738 Views
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