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31 Jan 2020 · 1 min read

मेरे अल्फाज

इतने करीब न आओ कि फिर तुम्हारे विना हम रह न सकें
वो ख्वाब न दिखाओ कि जो कभी पूरे हो ही न सकें
चंद रोज की है अपनी ये मुलाकात इस अजनबी शहर में
इस तरह निगाहें न मिलाओ कि हम नजरें हटा न सकें

अपने दिल में न वसाओ इसतरह कि हम घर जा न सकें
जख्म नासूर न बनाओ कि जिसे फिर हम छू भी न सकें
हकीकत जरा बताओ इस पागल को फरेव में न रखो
इतना दिल न दुखाओ कि इस दर्द को हम सह न सकें

इतने उजालों में न रखो कि फिर हम अंधेरे में रह न सकें
हमें अभी न हँसाइये कहिं उम्र भर सागर मुस्करा ही न सकें
छोड़ कर जाओगे तुम एक रोज हमको ये तो मुकम्मल तय है
इतना साथ न रहो कि फिर राहुल कुमार अकेले रह न सकें

ये रोग इश्क का न लगाओ जिसकी दवा भी मिल न सके
इतनी बारिश न करो कि ये जमींन फिर सूखी हो न सके
इन खतों को अपने तक ही सीमित रखो, मेरे पास न भेजो
क्या फायदा खत तो हों पर कभी हम तुमसे मिल न सकें

वेखॉफ शायर :-
? राहुल कुमार सागर ?
बदायूंनी

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