मेरी शव यात्रा
मैं जब निशब्द हूंगा
बे-खौफ हूंगा
स्तब्ध हूंगा
पड़ा हूँगा
बीच में
चरणों में
भीड़ के
बंधा हूँगा
डोर से
पीछे छोड़
अपनो के शोर से ।
वाह क्या
दिन होगा
या रात
या गौधूल
सी सांझ ।
शोर होगा
हर ओर होगा
मैं जड़ बना
ना साथ दूंगा
ना बोलूंगा
ना हिलूंगा ।
आखिरी यात्रा
शुरू होगी
मील भर
परछाई भी
छिपी होगी
चार कंधों में मुझे छोड़कर ।
वाह क्या
माहौल होगा
छोड़ दूंगा
हर मीत को
कमाई हर चीज को
रिश्तों से बंधी चीर को ।
खाली थैला
लेकर चलूंगा
भूख-प्यास
की ना परवाह करूंगा
लकड़ियों पर लेट कर
अनंत की यात्रा
शुरू करूंगा ।
जल, जमीन
सब छोड़ दूंगा
वायु से
आकाश में यात्रा करूंगा
वाह क्या
नशीब होगा
जब ब्रह्म मेरे
करीब होगा ।
फिर
सिंदूर भी
सफेद होगा
वंश अग्नि से
स्वागत करेगा
मेरे अंत और
यात्रा के प्रारम्भ का
कुछ मील मेरे साथ चल
परछाई मेरी याद कर
अलविदा अलविदा
मुझसे कहेगा ।।।