मेरी लेखनी
आज तो मेंरी लेखनी मुझसे बोलने लगी
मैं तेरे मन के भाव को अब लिख नही सकती
तू कठिन परिश्रम कर मुझे चलाने से पहले
अभी तुझ में मुझे चलाने का पूर्ण ज्ञान नही हुआ।
इसलिए तो तेरी फेसबुक पर तेरी लिखी कविता को
बहुत लाइक औऱ कमेंट नही मिलते क्योकि
तेरी लिखी कविता किसी के समझ में नहीं आती
इसलिए ही तो तेरी भावना को पसंद नही किया जाता।
अपनी लेखनी को धार देने में पहले मेहनत कर
मुझे लेखनी की ये चेतावनी थी मुझे नई राह दिखाने की
मैंने कहा साथ न छोड़ो मेरा साथ दो तभी तो
मैं अपने शब्दों को आकार दे पाऊंगी।
कभी तो मेरे भी दिन आयेंगे शायद मैं भी लिख पाऊंगी
कर्म करती चलूंगी फल की इच्छा कभी नही करुँगी
बस तू मेरा साथ कभी भी मत छोड़ना
मुझ पर विश्वास बनाये रखना बस फिर से।
मेरी लेखनी पुनः चल पड़ी,अपनी बात पर न अड़ी
अब मै लिखने का प्रयास करती हूं औऱ आपके सामने
अपने मन के भाव लेखनी से उकेरकर रूप देती हूँ
बस आप सब के आशीर्वाद की अभिलाषा में ही हूँ।
सुधार करती जा रही हूँ अपनी लेखनी में
लेखनी का आशीष अब साथ है तो मेरी ताकत हैं
आप सब के लिए मैं अपने मन के भाव उकेरती ओऱ
लिखती जा रही हैं आपकी अपनी “मंजु”की लेखनी।