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8 Sep 2017 · 1 min read

मेरी लेखनी कुछ तो बोल

मेरी लेखनी कभी क़िसी दिन
चुपके से सबसे बचकरके
मेरे मन की गांठे खोल
मन की बातें खुलकर बोल
मानव होकर जन्म लिया है
अपने मन का कर्म किया है
बेबस होकर यूं मत डोल
सही सही सच कह दे बोल।
मन के भाव मन मे क्यों रह गये
वाणी मे मिश्री दो घोल
मेरी लेखनी कभी क़िसी दिन
चुपके से सबसे बचकरके
मेरे मन की गांठे खोल।

Language: Hindi
422 Views
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