मेरी बेटी
“ बेटी “शब्द सुनते ही
कानों में मधुर घंटियाँ बजती ,
सारे जहाँ की खुशियाँ
नस – नस में उतरती ,
मेरी बेटी जब मेरे आंसूओं को
अपने नन्हे – नन्हे हाथों से पोछती ,
तब वो दुनिया की सारी सच्चाईयों को झुठलाती
ये कर दिखाती ,
कि आँसू नमकीन नहीं
मीठे होते हैं
जो मेरी माँ की
आँखों से बहते हैं ,
मेरी माँ ने भी किये होंगे पुण्य
तभी उन्होंने बेटियाँ जनी
वही पुण्य मुझमें आया
जो मै बेटी की माँ बनी !!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 13 – 05 – 2003 )