Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Apr 2017 · 4 min read

मेरी बारी

शुन्य मे निहारती निभा की आखें अपने छोटे पोता पोती की याद मे सूजती जा रही है जो उससे बहुत दुर चले गए है। अपने छोटे बेटे बहु की याद मे दुखी हो रही थी।
सोचती थी मैने उसका इतना किया, मगर उसने मुझे इसका क्या सिला दिया। हर वक्त उसकी गलतियो पर पर्दा डालती रहती थी।
जब छोटी बहु उसके पास रहती थी तो निभा उसके लिए बड़ी बहु से लड़ती रहती थी। मगर उसकी छोटी बहु ने कभी उसकी इज्जत नहीं की , झड़क देती थी पल मे, वो बेचारी निभा तो डर डर के रहती थी छोटी बहु से।
अपनी जिन्दगी का हिसाब लगा रही थी वो आज।
हमने तो कभी ऐसा व्यवहार नही किया था अपनी सास से।
कैसे वो छोटी सी उम्र मे ब्याह के आई थी गॉव मे,
कोई समझ नही कोई अनुभव नही , जो सास ने बता दिया वो ही कर लिया। जो समझा दिया वो ही समझ
लिया। अपना तो जैसे कोई तर्क ही नही था उसके पास सास ननंद से डर डर के रहती थी वो। खाने मे भी देर हो जाती थी उसे लेकिन उसने कभी कोई शिकायत नहीं की थी। सबसे पहले उठना आखिर मे सोना और आखिर मे ही खाना।
फिर भी सास ननंद की तानो की टोकरी उसके सिर पर रखी होती थी। सारा दिन काम मे थक कर जब वो पलंग पर लेटती थी तब यही सोचती थी ससुराल इसे ही कहते है क्या। माँ ने तो कुछ और ही कहा था ।
बेटी वहॉ सब तुझे प्यार करेगे. तुझे रानी बना कर रखेगे। पर यहॉ तो अपनी जिन्दगी अपनी नही।
ना ही वो ये कह सकती है कि मुझे ये चिज खानी है या मुझे ये चाहिए है
जब उसके पति की इच्छा शहर मे रहने की हुई तो उसने शहर मे मकान बनवा लिया। और वो अपने पति और बच्चो के साथ शहर आ गई।
सोचा अब सुख के दिन आ जाएगे। लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजुर था।
यहॉ आके उसका पति पीने लगा। जिससे वो और परेशान हो गई। उसका पति अब खर्चा भी कम देने लगा। बच्चो पर खर्च न कर अपने पीने खाने मे खर्च करने लगा।
निभा सोचती गॉव मे कम से कम पीते तो न थ। माँ का पुरा डर था। मगर अब यहॉ आके आजादी मिल गई। अब वो कुछ बोलती तो दोनो मे झगड़े होने लगते। झगड़े से बचती वो अब चुप ही रहने लगी। उसने तो जैसे अपने होठ सिल से लिए थे।
और काम धंधा भी खत्म हो गया।
निभा का अब हाथ तंग रहने लगा। ऐसा कई साल चला।
लेकिन जिन्दगी मे छाया अन्घेरा अब छटने लगा था।
उसके दोनो बेटे बड़े हो रहे थे। धीरे धीरे दोनो बेटो ने अपना व्यवसाय कर लिया। काम अच्छा चल पड़ा।
अब सब ठीक हो गया था पहले से। उजड़ा घर फिर से बस गया था।
बेटो के सहारे दिन कट जाएगे पर क्या पता था बहुए आकर ये दिन दिखाएगी।
बड़ी बहु आई तो साधारन सी जिन्दगी चल रही थी।
हा उनके बीच कभी कभार छोटी मोटी नोकझोक हो जाती थी, पर उनके बीच बहुत प्यार था।
ये तो हर घर मे ही होता है।
लेकिन छोटी बहु के आते ही घर का माहोल ही बदल गया। छोटी छोटी बाते बड़ा रुप धारन कर लेती थी।
बातो का मतलब गलत निकलने लगे । सबका नजरिया भी बदलने लगा।
मन मे भेद भाव ने जन्म ले लिया था। कई साल यु ही निकल गए।
एक दिन छोटी सी बात ने विकराल रुप ले लिया था।
नोबत थाने तक आ गई थी
छोटी बहु. की शर्मनाक हरकत पर वो कही मुहँ दिखाने लायक नही रहे थे। घर से निकलते वक्त ये सोचते थे कि कोई कुछ पुछेगा तो क्या जवाब देगे।
वो सोचते उसने तो हमें जेल में डलवाने की सोच ही ली थी। पर भगवान ने हमें बचा ही लिया। उनकी छोटी बेटी की सिफारिश पर वो इन झंझट से बच निकले थे। झगड़ो ने तो नाक कटवा ही दी थी। फैसले में छोटे बेटे बहु को घर व शहर छोड़ना पड़ा।
उसके छोटे बेटे का मन बिलकुल नही था घर परिवार छोड़ कर जाने का, पर पंचायत का फैसला था मानना पड़ा। सभी रो रहे थे जब वो जा रहे थे, कोई बाहर से तो कोई अन्दर से, खुश थी तो बस एक छोटी बहु जिसकी मर्जी से ये सब हुआ।
उनके जाने के बाद वो बेटे पोते पोति को याद करती रही।
सोच रही थी पहले सास से डरकर फिर पति से डर कर दिन गुजरे। अब बहुओ से डरकर दिन गुजरेगे।
हमारी तो बारी कभी आएगी ही नही।
अपनी सास की जिन्दगी से सबक लेती निभा की बड़ी बहु अभी से सर्तक रहने लगी
आज उसका पति भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलने को तैयार है।और देवरानी ने तो दिन्दगी का पाठ पढ़ा ही दिया था। जिसे वो अपनी सहेली समझने लगी थी वो ही उसकी दुशमन बन गई थी।
उसकी देवरानी ने उसे सबके सामने निचा दिखाने व झुठा साबित करने मे कोई कसर नही छोड़ी थी।
सबके दिलो मे एक दुसरे के प्रति नफरत भरने की पुरी कोशिश की थी। पर दिलो मे प्यार इतना भरा था कि नफरत समा ही नही सकी।
वक्त ने निभा के आँसू तो सुखा दिए। मगर उसे आज भी अपनी बारी का इंतजार है। सिले हुए होठो को आज भी खुलने का इंतजार है।
और बड़ी बहु को अपने ऊपर सास के ऐतबार का इंतजार।

Language: Hindi
1 Like · 317 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
आज का यथार्थ~
आज का यथार्थ~
दिनेश एल० "जैहिंद"
मित्र
मित्र
लक्ष्मी सिंह
"मायने"
Dr. Kishan tandon kranti
मुक्तक
मुक्तक
प्रीतम श्रावस्तवी
■ आज का विचार...
■ आज का विचार...
*Author प्रणय प्रभात*
23/31.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/31.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
If you do things the same way you've always done them, you'l
If you do things the same way you've always done them, you'l
Vipin Singh
मैं भी क्यों रखूं मतलब उनसे
मैं भी क्यों रखूं मतलब उनसे
gurudeenverma198
कलम
कलम
शायर देव मेहरानियां
मन मंथन कर ले एकांत पहर में
मन मंथन कर ले एकांत पहर में
Neelam Sharma
💐प्रेम कौतुक-513💐
💐प्रेम कौतुक-513💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
इस हसीन चेहरे को पर्दे में छुपाके रखा करो ।
इस हसीन चेहरे को पर्दे में छुपाके रखा करो ।
Phool gufran
बहुत कुछ बोल सकता हु,
बहुत कुछ बोल सकता हु,
Awneesh kumar
उन्नति का जन्मदिन
उन्नति का जन्मदिन
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
सब अपने दुख में दुखी, किसे सुनाएँ हाल।
सब अपने दुख में दुखी, किसे सुनाएँ हाल।
डॉ.सीमा अग्रवाल
*सीता नवमी*
*सीता नवमी*
Shashi kala vyas
सिन्धु घाटी की लिपि : क्यों अंग्रेज़ और कम्युनिस्ट इतिहासकार
सिन्धु घाटी की लिपि : क्यों अंग्रेज़ और कम्युनिस्ट इतिहासकार
बिमल तिवारी “आत्मबोध”
बेमतलब सा तू मेरा‌, और‌ मैं हर मतलब से सिर्फ तेरी
बेमतलब सा तू मेरा‌, और‌ मैं हर मतलब से सिर्फ तेरी
Minakshi
आज वो दौर है जब जिम करने वाला व्यक्ति महंगी कारें खरीद रहा ह
आज वो दौर है जब जिम करने वाला व्यक्ति महंगी कारें खरीद रहा ह
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
चॅंद्रयान
चॅंद्रयान
Paras Nath Jha
मैं
मैं "लूनी" नही जो "रवि" का ताप न सह पाऊं
ruby kumari
यदि कोई अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं से मुक्त हो तो वह मोक्ष औ
यदि कोई अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं से मुक्त हो तो वह मोक्ष औ
Ms.Ankit Halke jha
दहलीज के पार 🌷🙏
दहलीज के पार 🌷🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार
विजय कुमार अग्रवाल
एक प्रयास अपने लिए भी
एक प्रयास अपने लिए भी
Dr fauzia Naseem shad
*सच पूछो तो बहुत दिया, तुमने आभार तुम्हारा 【हिंदी गजल/गीतिका
*सच पूछो तो बहुत दिया, तुमने आभार तुम्हारा 【हिंदी गजल/गीतिका
Ravi Prakash
उम्र आते ही ....
उम्र आते ही ....
sushil sarna
“ कितने तुम अब बौने बनोगे ?”
“ कितने तुम अब बौने बनोगे ?”
DrLakshman Jha Parimal
तू कहीं दूर भी मुस्करा दे अगर,
तू कहीं दूर भी मुस्करा दे अगर,
Satish Srijan
Loading...