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31 Mar 2020 · 7 min read

मेरी प्रेम गाथा भाग 4

मेरी प्रेम गाथा भाग 4
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प्रियांशु त्रिपाठी का जवाब सुनकर मेरे मन में हताशा आ गई थी और दिल का चैन उड़ गया था।लेकिन वह तो अनभिज्ञ थी कि मेरे दिल अंदर उसके प्रति प्रेम की खिचड़ी पक रही है।अब मैं कक्षा नौंवी और वह सातवीं कक्षा की छात्रा थी।नवोदय के अंदर यह नियम था कि कनिष्ठ सदन में नौंवे कक्षा तक के विद्यार्थियों को लिया जाता था और उन्हीं में से ही दो छात्रों को कैप्टन बनाया जाता था।मुझे और मेरे मित्र को स्वतंत्र सदन का कैप्टन बना दिया था जो कि सदन के सदस्यों और सदनाध्यक्ष के की सहमति से हुआ था।कैप्टन का कार्य सुबह से शाम तक सभी प्रकार की असैंम्बली में कांऊटिग लेना,डीनर रजिस्टर,दैनिक मीटिंग रजिस्टर सभी पर प्रधानाचार्य के हस्ताक्षर करवाने के अतिरिक्त सदन की सारी जिम्मेवारी भी होती थी। ये काम दोनो कैप्टनों को मिलकर करना होता था लेकिन ये सारा मैं स्वयं अकैला करता था।इसकी वजह थी मेरा प्यार प्रियांशु थी।क्योंकि उसका कक्षा कक्ष मेरे कक्षाकक्ष के सामने था और प्रधानाचार्य कार्यालय जाने के लिए उसका कक्षाकक्ष रास्ते में था और वह लड़कियों की द्वितीय पंक्ति में द्वितीय सीट पर बैठती थी जो कि बाहर से गुजरने वालों को बैठी साफ दिखाई देती थी।इस प्रकार मैं कैप्टन पद का फायदा उठाते हुए अपनी प्रियतमा के दर्शन कर आँखे सेक लिया करता था और मन को अपार शांति और हर्ष की अनुभूति होती थी।जब कभी आँखे उसकी आँखों से टकरा जाती तो यह सोने पर सुहागा होता और वह दिन और फल का मेरे लिए विशेष महत्व होता। यह देख दिखाई का कार्य भी चतुराई से करता था की ताकि किसी को शक ना हो जाए क्योंकि शिक्षकों के जासूसों की पैनी नजर ऐसे मामलो पर हमेशा रहती थी। ये सब क्रियाकलाप अब मेरु दिनचर्या का हिस्सा था।यह सब मैं उसको अपनी ओर आकर्षित करने के लिए करता था। यहाँ एक राज की बात बताऊँ विद्यालय के प्रांगण में हमारे जैसी कई आधी अधूरी प्रेमी जोड़ियां पनप रही थी।
और हाँ, मैं उसे खुले आम ना देख कर चोर नजरों से देखता था।पहले नौंवीं का और बाद में सातवीं का कमरा आता था और अपने कमरे से निकलते ही उसकी कक्षा का दरवाजा दिखाई देता था और सामने बैठी हुई दिखाई पड़ती थी प्रियांशु।दरवाजे पर आते ही मैं अपनी नजर फेर लेता था ताकि मेरी चोरी पकड़ी ना जाए।उसे देखना मुझे बहुत अच्छा लगता था ।कभी कभी तो प्रियांशु सीट पर सो भी जाती थी और इसी तरह इसी मेरा आना जाना लगा रहता था।
मेरा सारा दिन भी विद्यालयी क्रियाकलापों में गुजर जाता था । सबसे पहले सुबह पी०टी० की बेल लगती तो सारे लड़के चले जाते लेकिन मेरी कक्षा के सदन में सीनियर होने के नाते ज्यादा नहीं जाते थे।लेकिन कैप्टन होनज के कारण मुझज जाना पड़ता था। मै सुबह सुबह ही पी०टी के लिए निकल लेता था, बास्केटबॉल ग्राउंड पर जहां से मेरे दिन की शुरुवात प्रियांशु के दर्शनों से होती थी। पीटी के समय प्रियांशु का वो हंसता खिलखिलाति हुआ गोरा गोरा गोल चेहरा, चेहरे और आँखों में पड़ते खुले बिखरे हुए बाल और घुटनों तक आती ब्लैक लोअर की रेड लाइन और उदयगिरी सदन की ब्लू कलर की टी शर्ट दिखाई पड़ते मन प्रफुल्लित हो जाता था और दोनों हाथो को थोड़ा नीचे करके दौड़ना, और थोड़ी दूर दौड़कर हाँफते हुए रुक जाना, मुझे इतना अच्छा लगता था कि उस पर से मेरी नजर हटती ही नहीं थी।पी टी के बाद मै नहा धोकर ड्रेस पहनकर तैयार हो जाता और सुबह सात बजे नास्ते की बेल लगते थी लेकिन मैं बैल से पहले बहानेसर ही मेस में चला जाता था।मैस के बारे में बता दूं कि मैस में दो दरवाजे थे जिसमें राईट साइड से लाइन लगाकर गर्ल्स एक एक कर के नाश्ता लेने आती थी और मेस में लगे डाईनिंग टेबल पर चली जाती थी और लेफ्ट साइड से ब्वॉयज आते हैं वो भी लाइन में लगते हैं और नाश्ता लेकर मेस में चले जाते धे।मेस में लड़के लड़कियां एक साथ नाश्ता करते थे लेकिन दोनों के बैठने की व्यवस्था अलग अलग होती थी।जिस दिन किस्मत से प्रियांशु भी लाइन में लगी मिलती तो उस दिन उस समय तक अपने से पीछे वालों को आगे करते हुए लाइन में लगा रहता जब तक वह नाश्ता लेकर चली नहीं जाती थी।तब तक मैं उसके रूप सौंदर्य लावण्य पैनी नजरों से निहारता रहता था।उसके तुरंत बाद मैं भी नाश्ता लेकर उसी के आसपास कोण बनाकर बैठ जाता था और उसके जाने के बाद ही उठता था।
जैसे वो नाश्ता लेकर मेस में जाती तो मै भी तुरंत नाश्ता लेता और जैसे ही मेस में जाता तो दूसरी तरफ से प्रियांशु अंदर a रही होती थी और फिर मै उसे देखता और वो मुझे फिर मै अपने टेबल पर बैठ कर नाश्ता करता और जब तक प्रियांशु करती तब तक ही करता जैसे वो उधती मै भी उध जाता और बाहर निकलते समय एक बार फिर उसे देखता और फिर अपने रूम पर आ जाता। और हां प्रियांशु मुझे देखती तो थी पर वो किस नजर से देखती थी कुछ नहीं पता था पर देखती थी।बाहर निकलते ही उसको देख वापिस हॉस्टल में आ जाता था।
प्रातः आठ बजे एमपी हॉल में असेम्बली होती थी। असेम्बली की बेल लगने के बाद हाउस से इस तरह टाइम सेट करके निकलता की प्रियांशु मुझे रास्ते में ही मिलती थी ।कभी कभी आगे पीछे हो जाते तो मै अपनी चाल धीमी कर उस के साथ हो लेता था,पर रहता पीछे ही था। प्रियांशु आगे आगे चलती और मै उसके पीछे रहता । जैसे दरवाजे से एमपी हॉल में इंट्री करते तो नैनों से नैन मिल जाते थे। इतना अच्छा लगता था कि क्या बताऊं ,दिल की धड़कन तेज हो जाती जैसे रक्त प्रवाह तेज हो रहा हो।
प्रियांशु कद में लंबी होने के कारण अपनी लाइन में सबसे पीछे खड़ी होती थी ।
मुझे काउंटिंग भी लेनी होती थी और काउंटिंग के बाद लाइन में सबसे आगे खड़ा रहता होता था,इसीलिए मैं काउंटिंग ही नहीं लेता था ।यह कार्य मैं मोहित भाई काउंटिंग लेता था। मै प्रियांशु को देखने के लिए लाइन में सबसे पीछे खड़ा हो जाता था और प्रियांशु को ही देखता रहता था क्योंकि असेम्बली आधे घंटे तक होती थी और यही समय था जब मैं प्रियांशु को जी भर कर देख पाता था।मै उसी दिन अटेंडेंस लेता था पर जिस दिन प्रियांशु का असेम्बली में कोई इवेंट होता था ।क्योंकि उस दिन उस दिन प्रियांशु स्टेज पर सबसे आगे खड़ी होती थी और मै भी अटेंडेंस लेने के बाद आगे खड़ा हो जाता था।
इस तरह मेरा असेम्बली का कार्यक्रम निर्धारित होता था।
असेम्बली ख़त्म होते ही सारे विद्यार्थी अपनी अपनी अपनी कक्षाओं में चले जाते और हॉल से कक्षाओं में जाने के लिए एक ही गलियारा था जो कि प्रिंसिपल सर के चैंबर के बगल से होकर जाता था। जब असेम्बली ख़त्म होती तो वो अपने साइड गेट से निकलती और मै अपने साइड गेट से और यहां पर भी इस तरह अपनी चाल को रखता की आगे आकर प्रिंसिपल सर के आगे वाले गलियारे में हम मिल जाएं ।गलियारे में दो लाइने साथ चलती थी दायीं दिशा से और बांई ओर से लड़के जाते थे।अब 1:30 पर छुट्टी होती तो फिर साथ निकलते और चैंबर के साथ वाले गलियारे में आकर मिलते ।कुछ कदम साथ चलते हुए हॉस्टल में चले जाते।हमारे हॉस्टल भी पास पास थे ,लगभग 100 मीटर की दूरी पर। दोपहर दो बजे लंच की बेल लगती और फिर से वही लाइन और मेस में तब तक खाता जब तक प्रियांशु खाती थी फिर जब वो निकलती तो मै भी निकलता और फिर अपने अपने सदन में….।
लंच के बाद लगभग एक घंटा आराम करने पश्चात हम चार बजे से सुपरविजन स्टडी के लिए फिर से कक्षाओं में चले जाते थे ।उस समय भी इसी तरह से निकलता कि प्रियांशु मुझे रास्ते में ही मिलती और आगे पीछे ही रहते और चैंबर की गली से होते हुवे अपने अपने क्लास रुम में चले जाते।
सांय पाँच बजे वापसी में निकलते फिर से चैंबर की गली से साथ निकलते और अपने अपने हाउस चले जाते।सांय पाँच बजे बिस्किट और चाय मिलती थी। नौंवी कक्षा वालों वालों की मेस में एक एक करके सबकी ड्यूटी लगती थी और जिस दिन मेरी ड्यूटी होती और गर्ल्स हाउस की कोई गर्ल्स आती तो उनको बोल देता था कि अनामिका को बुला दो और बहन के हाउस में 15 पैकेट बिस्किट देने होते थे और मै रिश्वत स्वरूप पूरि एक भरा हुआ पछरा पॉलीथिन ही दे देता और बोलता अपने फ्रेंड्स को भी खिला देना।
सांय 5:30 से 6:30 बजजे तक खेलने का समय होता था जिसमें मै बास्केट बाल और एथलेटिक खेलता था खेलने से ज्यादा नजर प्रियांशु के ऊपर रहती थी क्योंकि वो भी ग्राउंड में ही रहती थी। गेम टाइम ख़तम होने के बाद अटेंडेंस होती और मै फिर पीछे खड़ा होता और प्रियांशु को देखता रहता जब तक वापिस सदन की तरफ गमन ना हो जाता। उसके बाद फिर रात के सात बजे से सेल्फस्टडी चलती थी जो कि लड़कों की क्लास रूम में और गर्ल्स की मेस में चलती थी। शाम की असेम्बली के बाद कोई भी लड़का लड़की एक दूसरे से नहीं मिल सकते थे। रात को आठ बजे डीनर की बेल लग जाती और सभी विद्यार्थी मैस में आते , खाना खाते। मै भी खाना खाता और ये वो समय होता था जहां पर मेरी प्रियांशु से अंतिम मूक मुलाकात होती थी। इसके बाद सभी अपने अपने सदन में चले जाते और जहाँ पर सदनाध्यक्ष जो कि एक शिक्षक होता था ,अंतिम उपस्थिति लेकर चला जाता और हम लड़के कुछ देर हल्ला गुल्ला मस्ती कर अपने आपने बिस्तर पर तशरीफ़ रख सो जाते और मैं नींद में भी प्रियांशु संग हसीन स्वप्नों में खो जाता…….।

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
412 Views
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