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9 Apr 2020 · 6 min read

मेरी प्रेम गाथा अंतिम भाग (13)

प्रेम कहानी
अंतिम भाग(13)
जैसा कि पिछले अंक में बताया था कि परी विद्यालय में चली गई थी और मैं लखनऊ म्यूजिक महविद्यालय में चला गया था।विद्यालय जा कर उसने फोन द्वारा सकुशल वहाँ पहुंचने की खबर भी दे थी, जिससे मेरे दिल की बैचेनी को चैन मिल गया था।
अब हम दोनों के बीच का प्यार इतना ज्यादा गहरा हो गया था कि अब तो मन करता था कि सदा के लिए सात फेरे लेकर उसके प्रेम सानिध्य में रहूँ,क्यों कि हर चूंच को चोगा तो परमात्मा दे ही देगे और कर ही लेंगे
गरीबी दावे से जीवन बसर…..।लेकिन परी की जीवन आंकंक्षाओ को देखकर मन में फक रही घर बसाने की खिचड़ी बीच में ही कच्ची रह जाती थी।
परी कुछ दिनों के लिए घर आई थी,शायद उनके घर पर कोई छोटा मोटा कार्यक्रम होगा।यस सब परी ने हर बार की तरह आते ही बता दिया थि। हर शाम परी के घर पास वाली मार्केट में बर्गर की रेहड़ी लगती थी जो कि काफी मशहूर थी और अब हर शाम परी अपनी दिव्या दीदी के साथ वहाँ आती थी और मैं अपनज अश्विनी भैया के साथ उनके पीछे पीछे पहुंच जाता था और हम सभी लोग मिलकर बर्गर खाते एवं खूब मौज मस्तियाँ करते।इस बीज दीदी भी हमें समझदेका परिचय देते हुए हम दोनों को एकांत में मिलने का समय दे देती और जितनी देरे हम अकेले होते परी का सुंदर मुलायम हाथ मेरे हाथों में होता था जिसे मैं पलोसता रहता जो कि उसे भी अच्छा लगता था।
कह कभी तो हम फोन पर बातें करते करते यूँ ही भावना में बहकर भावुक हो कर अकारण रोने लग जाते थे,शायद यही सच्चे प्रेम की गहराई थी, जिसे केवल प्यार करने वाले ही महसूस कर सकते थे।
और अचानक मेरे इस सच्चे मुच्चे प्यार को पता नहीं किसकी नजर लग गई थी कि शाम को धशदिव्या दीदी ने फोन द्वारा सब कुछ बता दिया कि मेरे और परी के प्रेम की और चोरी छिपे मिलने की भनक उसके घर में उसके बड़े भाई को लग गई थी और उसने परी को अंतिम चेतावनी देते हुए केवल चेता कर यह कह कर छोड़ दिया कि अब वह.भविष्य में कभी भी मेरे से ना ही मिलेगी और ना ही कोई बात करेगी…….।परी तभी से रोये जा रही थी और उसने यह सब कहने के लिए उसे बोला था और साथ में उसने मेरे लिए एक संदेश भी भेजा कि मैं एक अच्छा गायक बन कर संगीत के क्षेत्र में नाम कमाऊं और भविष्य में एक मुकाम बनाऊं। बाकी स्कूल में जाकर मुझ से विस्तार में बात करेगी और मुझे हिदायत भु दे दी कि मैं उसके घर फोन भी ना करूँ और यह कहकर दिव्या ने फोन काट दिया।
दिव्या की ये बातें सुनकर मेरी धड़कन तेजी से धड़क रहीं थी और मुझज एसा लग रहा था जैसे मेरा घर बसने सज पहले उजड़ गया ।मेरे सीने आग भभक रही थी ,जो गर्म सांसों के माध्यम से बाहर आ रही थी। मेरी स्थिति उस समय ऐसी थी मानो उसके भाई ने भारत के प्रधानमंत्री की भांति प्रेम नामक नाईलाज महामारी के प्रकोप से बचने के लिये रात्रि इठ बजे वाले भाषण द्वारा आदेश देते हुए हम दोनों पर घर और बाहर लोकडाऊन लागू कर दिया हो। मेरी आँखों में आँसू बह रहे थे।
मैने बाइक निकाला और झट से अश्विनी भैया के पास पहुंचा और उसको आफनु सारी दर्द भरी दास्तान सुना दी और उस दिन मै इतना रोया की मेरी आंखो में सोजिश आ गई और आंखे लाल हो गई जैसे मैं कोई किसी प्रकार के नशे का आदि था। उस रात मै घर नहीं आया और वहाँ भैया के पास उसके घर पर ही रह गया और रात भर भैया के गले लगकर बहुत रोया ।भैया ने प्रेमपूर्वक समझाते हुए मेरा ढाँढस बढाया कि मैं चिंता ना करूँ, सब कुछ ठीक हो जाएगा।
मै छुट्टियों का इंतजार कर रहा था ,क्योंकि फरी छुट्टियों में घर आती थी। परी को घर आए दो दिन हो गये थे लेकिन उसका ना ही कोई मैसेज आया और नि ही कोई कॉल । मैंने इंतजाम करे के उसकी दीदी दिव्या के पास मैसेज किया और दीदी ने कहा कि वह गांव आई हुई थी और घर पहुंच कर वह परी से मेरी बात करवाने की कोशिश करेगी।इस बीच अपने भाई के डर से परी ने मुझे बलॉक कर दिया था। किसी ने सच ही कहा था कि प्रेम संयोग जितना आनन्ददायक होता हैं ,उसह कहीं गुणा ज्यादा प्रेम वियोग दर्द भरा और दर्दनायक।
उसके बाद मैंने भी परी से बात करने की कोशिश नहीं की क्योंकि परी का बारहवीं कक्षा बोर्ड की थी और मैं उसकी पढाई बाधित नहीं करना चाहता था।
मेरे पास परी से बात करने के दस से ज्यादा कॉन्टैक्ट नंबर थे लेकिन मैंने उसे कॉल नहीं किया।लेकिन मुझे पता था कि परी ने मुझसे बात करना क्यों छोड़ा दिया था,क्योंकि उसके भाई ने उसको खुद की कसम दी थी,जिसको परी मुझ से भी ज्यादा प्यार करती थी।लेकिन परी अपने मन की भावनाओं को किसी ओर माध्यम से भी व्यक्त कर सकती थी, जोकि उसनें नहीं किया।उसने तो मुझे दिल से निकाल फैंक ऐसे निकाल दिया जैसे हम दोनों के मध्य कुछ भी नहीं था। पता था उसके भैया खुद की कसम दिलवा दी थी, लेकिन फिर भी किसी के जरिए तो मुझसे कुछ कह सकती थी लेकिन परी ने मुझे एसा भुला दिया कि जैसे हम दोनों के बीच कुछ था ही नहीं .. ।यह बात मेरी समझ से बाहर थी कि कोई अपने प्यार को इतनी आसानी से कैसे भूल सकता था।मै परी से बहुत प्यार करता था और हमेशा करता रहूंगा।
मैं परी को कहा करता था कि परी तुम फिल्मी किरदारों की भांति यूँ अकेले छोड़ कर मत जाना अन्यथा मैं जी नहीं पाऊंगा।और मैं उसकी खुशी के लिए अपनी सारी खुशियों को न्यौछावर कर दूँगा।लेकिन परी तो मुझे बिना बताए……।कम से कम जक बार बात तो कर सकती थी।मैने उसे शारीरक नहीं बल्कि रूहानी प्यार किया था।मैंने तो परु के पीछे अपना भविष्य भी दांव पर ला दिया था।क्योंकि सच्एप्रेम तो जीवन में एक बार ही होति है।मुझे यह बात अच्छी तरह समझ इ गई थी कि लड़कियाँ कभी भी अपने फैंसले लेने के लिए स्वतंत्र नहीं थी,और उनको अपने बाबुल की पगड़ी का मान सम्मान पूर्व की भांति सदैव रखना होता था।यही भारतीय संस्कृति और संस्कार हैं।
परी को मैंने बहुत सी निशानियां भी दी थी और मैं सोचता रहता था वह भी सतीय सीति की भांति राम वनवास में निशानियों को याद कर के रोती बिलखती तो होगी। जैसे कि मैनें उसकी दी हुई सारी निशानियों को विरासत में संभाल कर रखा हुआ था,जिसे देख कर मैं बहुत रोता था और सोचता था
याद मेरी उसको आती तो होगी
रातों को उठकर व़ो जागती होगीं
मैनें उसकी पहली प्रेम निशानी को बहुत संभाल कर रखा था,जो कि मेरे दिल के बहुत करीब थी,जिसे मैं उसकी याद आने पर चुमता रहता था और यह सोचति रहता था कि यदि प्यार नसीब ना हो तो जीवन में कभी किसी को प्यार होना ही नहीं चाहिए।क्योंकि प्रेम विरह एक ऐसी अवस्था होतीं हैं जहाँ पर जान निकलती नहीं और जिंदगी कभी मिलतीं नही है।
इस बीच परी बारहवी की परीक्षा देकर सदा के लिए नवोनदय विद्यालय छोड़कर घर वापिस आ गई थी।एक दिन उसकी बहन दिव्या बाजार में मिली थी,जहाँ उसनें मुझे बताया था कि उसके भैया और पापा ने उसका रिश्ता तय कर दिया था।यह सब सुनकर मेरे सूखे कंठ से आवाज नहीं निकल रही थी, बस आँखो से आँसुओं की निरंतर बरसात हो रही थी।मेरा सर्वस्व लुट चुका था और मैं प्रेम में अनाथ हो गया था।लेकिन मैं परी को कहीं भी दोषी नही ठहरा रहा था….।लेकिन मैं परी को हमेशा प्यार करता रहूंगा और उसका मेरे जीवन में सदैव विशिष्ट स्थान रहेगा।
परी मुझसे दूर जरूर थी लेकिन मेरे दिल से दूर कभु नहीं थी।अभी भी वो मेरे दिल में ही थी और हमेशा रहेगी,जब तक शरीर में प्राण रहेंगे। क्योंकि जिससे मैने प्यार किया, उसे ऐसे मैं भूल जाऊँ यह हो नहीं सकता और परी मुझे भूल जाए इसका मुझे ना तो अनुमान था और ना ही यथार्थ में जानकरी।
और अंत में मैं अपनी संगीत की शिक्षा और परी को दिया वादा पूर्ण करने के उद्देश्य से लखनऊ चला गया था, यह सोचकर कि यदि जीवन में संगीत के क्षेत्र में गायक के रूप में यदि कामयाब हो गया तो अपनी हर वीडियो और ओडियो गीतों के माध्यम से परी के प्रति सच्चे प्रेम को श्रद्धांजलि देता रहूँगा और परी को सदैव जीवन में खुश रहने की शुभ आशीषें देता रहूँगा..और हाँ जिंदा रहने तक हर मंगलवार को बजरंगबली हनुमान का उपवास भी रखता रहूँगा…………।।

कहानी समाप्त…।

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
418 Views
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