मेरी नींद आँखों से उड़ने लगी है
हवाएं बसंती बसंती जो चलने लगी हैं
चमन की ये कलियाँ निखरने लगी हैं
नही आरज़ू अब रही बिन तुम्हारे
मेरी जिंदगी तो भटकने लगी है
किया इस तरह से जिगर मेरा छलनी
मेरी आरज़ू भी कुचलने लगी हैं
बहुत खूबसूरत बला है मुहब्बत
जो पल पल में रंगत बदलने लगी है
न कमजोर समझो वो इक शेरनी है
हवाओं का रुख जो बदलने लगी हैं
हुआ क्या है मुझको कोई तो बता दो
मेरी नींद आंखों से उड़ने लगी है
17
लजा कर गिरी मेरे पहलू में आकर
अदा से वही फिर सिमटने लगी है
18
लगा चांद आया है आंगन में मेरे
के अब चांदनी भी उतरने लगी है
19
शज़र तो मुहब्बत के सूख चुके हैं
फसल नफ़रतों की तो उगने लगी है
20
नही रुकते आंसू निगाहों से उसकी
खतों को मेरे जब वो पढ़ने लगी है
21
नही पास आओ मुझे माफ कर दो
कि अब दूरियां अच्छी लगने लगी है
22
जो कल तक नहाती न थी हफ्ते भर तक
वो अब शीशे जैसी दमकने लगी है