“मेरी डायरी से”
काश तुम मेरे दर्द को समझ पाते,
तो ऐसे ना मुझे तुम कभी तड़पाते।
मैं तो कब से तेरी राह देख रहा हूँ,
काश तू जैसे गये वैसे वापस लौट आते।
लिखे थे मैंने दो-चार मिसरे जो तेरे लिए,
काश उन्हें अपने होठों पर कभी लेकर आते।
तू तो कहती है कि मुझे तुम्हारी याद नही आती,
फिर क्यों मेरी तस्वीर को तन्हाई में निहारते।
तूने तो कहा था तुझे जो रंग पसंद है वो मुझे पसंद नही,
फिर उसी रंग के सलवार में सामने मंदिर क्यों आते।
ज़र्रा-ज़र्रा लगा है हमें मिलाने में ऐ सनम,
फिर क्यों हर बार इतनी दूर चले जाते।
……✍ पंकज शर्मा