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29 May 2021 · 1 min read

मेरी ख्वाहिश

मेरी तो
ख्वाहिश थी कि
दर्पण में
मेरी छवि मुझे
पहली सी ही दिखे
अब बदली बदली दिखती है
मेरी ही तस्वीर की शक्ल तो
मैं क्या करूं
थोड़ा सा वक्त निकालकर
हर रोज जो देखती रहती खुद को तो
यह नौबत न आती
अब इतनी सदियों बाद
फुरसत मिली
खुद को निहारने की तो
यह सब होना तो लाजिमी
था।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Language: Hindi
1 Like · 361 Views
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