मेरी कश्ती को न किनारा मिला
मुझे उनके खत का लिफाफा मिला
जो देखा वरक सारा सादा मिला
??
हुए रूबरू ———ये शिकायत लिए
मुझे उल्टे उनसे —ही शिकवा मिला
??
कभी लौट कर आए मैके से तो
मुझे आज बीवी से रोना मिला
??
परों को कतर के किया जब से बंंद
तड़पता मुझे वो परिंदा मिला
??
भटकता रहा तीरगी में मगर
मुझे एक टूटा न तारा मिला
??
जहां मिल रहा दर्दे दिल से शिफा
न ऐसा कोई दवाखाना मिला
??
मुझे डूब कर यूं ही मर जाना है
मेरी कश्ती को न किनारा मिला
??
जिसे जिंदगी मैं समझता रहा
उसी से मुझे आज धोखा मिला
??
मिले फूल सबको चमन में मगर
मुझे फक्त कांटों का हिस्सा मिला
??
हमें भूख थी उनके दीदार की
मगर आंसुओं का निवाला मिला
??
ग़मों की चलीं जब हवाएं तो फिर
शरर कोई दिल में सुलगता मिला
??
न जिक्रे वफा अब करो ऐ सनम
ये दिल तो हमेशा से टूटता मिला
??
ये दर्दे जिगर और ये आहो फुगां
हमारी वफा का सिला क्या मिला
??
ये दिल आए –सदियों से ही टूटते
सबब मौत का दिल लगाना मिला
??
बनाया था “प्रीतम” जो हमने कभी
घरौंदा हमारा ——–बिखरता मिला
??
प्रीतम राठौर
श्रावस्ती ( उ०प्र०)