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2 Jul 2017 · 1 min read

मेरा श्रृंगार हो गईं ग़ज़लें

02-07-2017

मेरा श्रृंगार हो गईं ग़ज़लें
तीज त्यौहार हो गईं ग़ज़लें

छेड़ती धड़कनों में ये सरगम
दिल की झंकार हो गईं ग़ज़लें

लूटने लोग अब लगे इनको
लगता बाज़ार हो गईं ग़ज़लें

चैन आता नही बिना इनके
अपना तो प्यार हो गईं ग़ज़लें

बात करती हैं मन से मन की ये
मन का उपचार हो गईं ग़ज़लें

वार सीधा करें दिलों पर ये
तीखी तलवार हो गईं ग़ज़लें

दिल को कर बाग बाग जाती हैं
उनका रुखसार हो गईं गज़लें

आँधियाँ चल पड़ी हैं अब इनकी
कितनी बीमार हो गईं ग़ज़लें

‘अर्चना” हो गई नहीं शायर
जो ये दो चार हो गईं ग़ज़लें

डॉ अर्चना गुप्ता

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