मेरा ” मैं “
सिरताज मेरा जब
गिरेगा निस्तेज होकर
ज़िस्म की दरारों से निकलकर
मेरा ” मैं ” आजाद होगा ।
बिखरेगा हवा में
और ताज़ी सांस लेगा
नफ़्स मेरा सर उठाकर
फ़तेह कर ज़िस्म को
ख़ाक होने के लिए
लिबाज़ को अकेला छोड़ देगा ।
आजाद ” मैं ” मेरा
नही दुर्बल ,
ना गुलाम होगा
हर सवाल पर बेबाक होगा
और सामने
मौत का शैतान होगा ।
खूंखार होकर
दिल खोकर
उसकी हुक़ूमत पर
ज़लील उसको करेगा
तू खुदा है या खता है
इंसानियत के ज़ुल्म की
पेशगी करेगा ।
” मैं ” मेरा आजद होकर
जन्नत के ताज
को फ़ेंक देगा
जिसने बनाया ज़ुल्म को
जालिम ज़िस्म को
उसकी तकरीर को
निरस्त करेगा ।
हर गुलामी की
कड़ी को तोड़कर
जिस्मों के बंधनो को
जिस्मों के सहारे छोड़कर
नूर से रिस्ता
फिर से जोड़लेगा ।
ना मेरा स्वाद था
ना मेरा इश्क़
इश्तियाक था
कफ़स से आजाद होना
शून्य में शून्य होना
मेरा इतंजार था ।
दिन रात का तोड़ बंधन
सुख दुख का
छोड़ दामन
मैं , मेरा आवाज़ देगा
गर्द को छोड़ जमीं पर
पानी भाप बन
बादल में फिर से
जा मिलेगा ।