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25 Apr 2020 · 1 min read

((((मेघ-जाल))))

ये कैसा मेघ-जाल डाला है दर्द ने दिल पर,
आँसू बह बह कर दरिया उफान पर है.

ये कैसा हवा-जाल हैं गमगीन हवायों का,
मोहब्बत की कश्ती तूफान पर है।

मेरी शहर-ए-रानाई की न बात कर,
काला धुआँ आसमान पर है.

गलियां सुनी पड़ी हैं सारी,
रौनक-ए-बहार शमशान पर है।

किसकी नज़र लगी मेरी इस हयाती को,
सारी रहनुमाई आराम पर है.

बिलखते बच्चों का शोर कोई कियूं नही सुनता,
क्यों सारी अवाज़ाई विराम पर है।

ये ज़माने के लोगों ने क्या खता करदी,
कैसी मुसीबत हर जान पर है.

भेद कोई गहरा है,खुदा नाराज़ है,
लगता है कोई इंसानियत का दिया गहरा ज़ख़्म,
खुदा की शान पर है।

Language: Hindi
2 Likes · 382 Views
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