मेघा
मेघा….
क्यों नही रहे हो गरज
नैना गये है तरस
अब तो जाओ तुम बरस,
काशी को तृप्त करो
अपने मेघो में
जल से लिप्त करो,
शिव की नगरी को
यूँ ना प्यासा रहने दो
बरसो बरसो ऐसा बरसो
की सब बोलें
अब तो रहने दो ।।।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 09 -07 – 2018 )