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10 Jul 2017 · 1 min read

मेंहदी : मुक्तक

मेंहदी
// दिनेश एल० “जैहिंद”

मैं कभी जंगलों में गुमसुम सोई थी ।
निज अनुपयोगिता पे छुपछुप रोई थी ।।
शुक्रगुजार हूँ मैं उन ऋषि-मुनियों की,,
उनकी नज़रों में जो कभी मैं आई थी ।।

मेरी शीतलता व कोमलता अपनाओ ।
मेरी लालिमा और मोहकता अपनाओ ।।
मेरे इन गुनों को अपनाकर जगत में,,
अपने प्रियवर पिया की प्यारी बन जाओ ।।

मैं मेहँदी बड़ी असरदार हूँ ।
रक्त वर्णा बहुत चटकदार हूँ ।।
मेरी पूछ बड़ी स्त्रियों में,,
मैं जो प्रिय उनका सिंगार हूँ ।।

=== मौलिक ====
दिनेश एल० “जैहिंद”
15. 06. 2017

Language: Hindi
433 Views
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