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3 Jul 2019 · 2 min read

मृत्यु एक उमंग

मृत्यु के बाद भी कुछ ऋण होते हैं जो मनुष्य पर चढ़े रहते हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में पांच प्रकार के ऋण बताए गए हैं देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण, भूत ऋण और लोक ऋण। इनमें से प्रथम चार ऋण तो मनुष्य के इस जन्म के कर्म के आधार पर अगले जन्म में पीछा करते हैं। इनमें से पांचवां ऋण यानी लोक ऋण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। प्रथम चारों ऋण तो मनुष्य पर जीवित अवस्था में चढ़ते हैं, जबकि लोक ऋण मृत्यु के पश्चात चढ़ता है।

?जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसके दाह संस्कार में जो लकड़ियां , कंडे, घी , लाख , घास सब प्राकृतिजन्य ही है एवं यही उपयोग की जाती हैं । वास्तव में यही सबसे अंतिम ऋण होता है। यह ऋण लेकर जब मनुष्य नए जन्म में पहुंचता है तो उसे प्रकृति से जुड़े अनेक प्रकार के कष्टों का भोग करना पड़ता है। उसे प्रकृति से पर्याप्त पोषण और संरक्षण नहीं मिलने से वह गंभीर रोगों का शिकार होता है। मनुष्य की मृत्यु के बाद सुनाए जाने वाले गरूड़ पुराण में भी स्पष्ट कहा गया है कि जिस मनुष्य पर लोक ऋण बाकी रहता है उसकी अगले जन्म में मृत्यु भी प्रकृति जनित रोगों और प्राकृतिक आपदाओं, वाहन दुर्घटना में होती है। ऐसा मनुष्य जहरीले जीव-जंतुओं के काटे जाने से मारा जाता है।

यह ऋण उतारने का तरीका :-

शास्त्रों में कहा गया है कि लोक ऋण उतारने का एकमात्र साधन है प्रकृति का संरक्षण , इसमें वृक्ष , गौ माता , खेत आदि शामिल हैं। चूंकि मनुष्य पर अंतिम ऋण चिता की लकड़ी का होता है, इसलिए अपने जीवनकाल में प्रत्येक मनुष्य को अपनी आयु की दशांश मात्रा में वृक्ष अनिवार्य रूप से लगाना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार कलयुग में मनुष्य की आयु सौ वर्ष मानी गई है। इसका दशांश यानी 10 छायादार, फलदार पेड़ प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवनकाल में लगाना ही चाहिए ।
गौ माता को घर में हाथ से बनी बनी रोटी खिलानी चाहिए।
गौ के गोबर , मूत्र आदि को फैंकने या नष्ट होने बजाए उनका औषधि एवं अन्य कार्यों हेतु उपयोग करना चाहिए।
आजकल दाहसंस्कार में लकड़ी के स्थान पर गोबर की बनी लकड़ी का उपयोग शुरू हो गया है और उपलब्ध हैं अतः श्मशान घाट पर इन्हीं का उपयोग करना चाहिए।
इससे वृक्षों का संरक्षण होगा और अंतिम ॠण से हम बेचेंगे।

मृत्यु एक सत्य है , मृत्यु एक उत्सव है ।
जीवन जियो ऐसा कि सब अपने है , हम ईश्वर के करीब है ।
मृत्यु से भय नहीं होगा जब हम सदमार्ग पर जीवन बिताएंगे ।
अपने समस्त ॠण का निपटारा यहीं करेंगे ।

लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 380 Views
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