Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Aug 2020 · 3 min read

मूक रिश्ता

::सत्य कथा::
“”””””””””””””””
मूक रिश्ता
=======
अब जब भी वह दिखती है अनायास ही बीता समय चलचित्र की तरह घूम जाता है।अभी अधिक समय बीता भी नहीं है।लेकिन ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो।
पिछले वर्ष 28 जुलाई 2020 को माँ के देह त्याग के दिन तक किसी गांव वाले की एक लगभग नव बुजुर्ग गाय रोज नियम से सुबह सुबह मेरे दरवाजे से गुजर कर भोजन की तलाश में निकलती थी। मेरा मोहल्ला चूंकि गांव से सटा है इसलिए इस तरह जानवरों का आना जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।कुछ पालतू कुछ आवारा पशुओं से हमारी गली हमेशा गुंजायमान रहती है।खैर….(उस गाय को इस घर से जोड़़ने में कड़ी बना हमारा भांजा जो बचपन में हमारे साथ था।वह दिन में कई बार जैसे उस गाय को देखता, बुलाता और रोटी देता।शायद इसीलिए उसे हमसे,हमारे घर से इतना नेह हो गया।)
वह गाय पुनः घूम फिर कर 1-1.5घंटे बाद वापस आती थी।तब वह मेरे दरवाजे पर आती अगर दरवाजा अंदर से बंद नहीं है तो अपने सिर से दरवाजा ढकेल कर अगले पैर अंदर कर खड़ी जाती और कुछ देर कुछ पाने का इंतजार करती,थोड़ा विलम्ब या ध्यान न दे पाने की हालत में घुसती हुई कमरे से अंदर बरामदे तक भी बिना संकोच पहुंच जाती और खाने को मिल भी जाता तो भी वह बिना जाने के लिए कहे बिना हिलती तक नहीं थी और यदि दरवाजा अंदर से बंद है तो सिर से दस्तक देकर अपने होने का संकेत भी देती।बहुत बार सुबह इस चक्कर में रोटी लिए हुए जब दरवाजा खोला तो किसी व्यक्ति को पाकर शर्मिंदगी भी हुई।हालांकि हमें इससे कोई खास असुविधा भी नहीं थी शायद इसमें हमारा स्वार्थ भी था कि इसी बहाने गऊ माता के दर्शन, स्पर्श, नमन का मौका भी अनायास मिल जाता था। मेरी माँ अपनी आदत के अनुसार सोने खाने के समय के अलावा सामान्यतः बाहर वाले कमरे में दरवाजे के पास और सुबह शाम बाहर कुर्सी पर बैठती रहीं।वह गाय आती और माँ के मुँँह के पास मुँह करके चुपचाप खड़ी रहती।माँ उसका सिर सहलातीं तो वह बड़े शांत भाव से खड़ी रहती।कुछ पा जाती तो भी बिना दुबारा आने के लिए सुने बगैर हिलती भी नहीं थी।बहुत बार तो चुपचाप दरवाजे पर बैठकर आराम भी करती और अपनी इच्छा होने पर चली जाती।यह क्रम माँ की मृत्यु तक अनवरत लगभग 10-12 वर्षों से चल रहा था।
माँ की मृत्यु के बाद से उसका आना अनायास कम लगभग न के बराबर रह गया है।अब तो बुलाने पर भी जैसे आना नहीं चाहती।हाथ में खाने के लिए रोटी दिखाने पर भी जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था,जबकि पहले ऐसा नहीं था। अब तो वह दरवाजे से गुजरती है तो मन किया आ गई नहीं तो कोई बात नहीं,जैसे माँ के जाने के बाद वह इस घर से विमुख सी हो गई हो।उसके उदास चेहरे को देख कर महसूस होता है कि जैसे उसनें मेरी माँ नहीं अपने किसी आत्मीय को खो दिया हो।
बहरहाल आज एक साल बाद भी उस मूक गऊ माता के भावों को महसूस कर पाने का असफल क्रम जारी है।फिर ऐसा भी लगता है जैसे उसका मेरी माँ के साथ पूर्व जन्म का रिश्ता रहा है।
बस यहीं धरती का सबसे बुद्धिमान प्राणी अपने को असहाय पाता है।जैसे प्रकृति नें उसे नंगा कर दिया हो।
गऊ माता को नमन वंदन के साथ…..।
?सुधीर श्रीवास्तव

Language: Hindi
2 Likes · 177 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मुकेश का दीवाने
मुकेश का दीवाने
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि
Ram Babu Mandal
Pollution & Mental Health
Pollution & Mental Health
Tushar Jagawat
Ishq ke panne par naam tera likh dia,
Ishq ke panne par naam tera likh dia,
Chinkey Jain
दोनों हाथों से दुआएं दीजिए
दोनों हाथों से दुआएं दीजिए
Harminder Kaur
आँखों से नींदे
आँखों से नींदे
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
मां के हाथ में थामी है अपने जिंदगी की कलम मैंने
मां के हाथ में थामी है अपने जिंदगी की कलम मैंने
कवि दीपक बवेजा
#justareminderdrarunkumarshastri
#justareminderdrarunkumarshastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आंखे, बाते, जुल्फे, मुस्कुराहटे एक साथ में ही वार कर रही हो।
आंखे, बाते, जुल्फे, मुस्कुराहटे एक साथ में ही वार कर रही हो।
Vishal babu (vishu)
खूब उड़ रही तितलियां
खूब उड़ रही तितलियां
surenderpal vaidya
मुझे मेरी फितरत को बदलना है
मुझे मेरी फितरत को बदलना है
Basant Bhagawan Roy
NeelPadam
NeelPadam
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
कुछ रातों के घने अँधेरे, सुबह से कहाँ मिल पाते हैं।
कुछ रातों के घने अँधेरे, सुबह से कहाँ मिल पाते हैं।
Manisha Manjari
कहां गए तुम
कहां गए तुम
Satish Srijan
संसार का स्वरूप(3)
संसार का स्वरूप(3)
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
"सुन रहा है न तू"
Pushpraj Anant
" बोलती आँखें सदा "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
..सुप्रभात
..सुप्रभात
आर.एस. 'प्रीतम'
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
टूटने का मर्म
टूटने का मर्म
Surinder blackpen
ग़ज़ल/नज़्म - उसका प्यार जब से कुछ-कुछ गहरा हुआ है
ग़ज़ल/नज़्म - उसका प्यार जब से कुछ-कुछ गहरा हुआ है
अनिल कुमार
क्रांतिवीर नारायण सिंह
क्रांतिवीर नारायण सिंह
Dr. Pradeep Kumar Sharma
योग और नीरोग
योग और नीरोग
Dr Parveen Thakur
संस्कारों और वीरों की धरा...!!!!
संस्कारों और वीरों की धरा...!!!!
Jyoti Khari
"इमली"
Dr. Kishan tandon kranti
बुढ़ापे में हड्डियाँ सूखा पतला
बुढ़ापे में हड्डियाँ सूखा पतला
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
याद आती है
याद आती है
Er. Sanjay Shrivastava
(8) मैं और तुम (शून्य- सृष्टि )
(8) मैं और तुम (शून्य- सृष्टि )
Kishore Nigam
🙅POK🙅
🙅POK🙅
*Author प्रणय प्रभात*
ईद आ गई है
ईद आ गई है
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
Loading...