मुंहवे जुठार लऽ…
#भोजपुरी- #लोक_गीत—
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पति-पत्नी के प्रेमिल नोक झोंक पर आधारित एगो गीत, समीक्षा हेतु प्रस्तुत बा।
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रुसल बाड़ू काहे धनिया, सोना के हार लऽ।
भर पेट ना खइबू तऽ, मुंहवे जुठार लऽ।।
भुखे पेट सुतबू तऽ, पेट गुड़गुड़ाई।
उल्ह-मेल्ह सारी रात, निंदियों ना आई।
खइबू ना दाल – भात, ऊपर से अचार लऽ।
भर पेट ना खइबू तऽ, मुंहवे जुठार लऽ।।
भुखे पेट होखे नाही, भजन मोर रानी।
भुखले से लाभ नाही, गजन दिलजानी।
छोड़ऽ खिसिआइल रानी, आदत सुधार लऽ।
भर पेट ना खइबू तऽ, मुंहवे जुठार लऽ।।
खींस -पीत से तऽ रानी, कुछो नाहीं मिली।
चांन जइसे मुखड़ा तोहर, बोल कइसे खिली।
बिगड़ल ई रुप बांटे, चांन से उधार लऽ।
भर पेट ना खइबू तऽ, मुंहवे जुठार लऽ।।
सचिन से जो रुसल बाड़ू, खाना जीन छोड़ऽ।
सेहत से अपना तू, मुंह जीन मोड़ऽ।
भोजने से जीवन बा ई, बतियों विचार लऽ।
भर पेट ना खइबू तऽ, मुंहवो जुठार लऽ।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
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