मुस्कुराया जाए
दुश्मन को मज़ा चखाया जाए
चलो थोड़ा सा मुस्कुराया जाए
अंधेरे बहुत मगरूर हो रहे हैं
चलो एक चराग़ जलाया जाए
ज़मीन छोड़ना मुनासिब नहीं
चलो आसमान झुकाया जाए
वो खुद को बे ऐब समझते हैं
आइना उनको दिखाया जाए
एक बार क्या सौ बार मरना पड़े
क़र्ज़ मिट्टी का चुकाया जाए
शक़ो शुबहा जिनकी फ़ितरत हो ‘अर्श’
ऐसे लोगों से रिश्ता ना बनाया जाए