मुश्किलों में है सफीना
2122 2122 2122 21
रूपमाला छंद
गीतिका
मुश्किलों में है सफीना बीच ये मझधार।
मिल रहा नहिं अब किनारा ढूंढती पतवार।।(१)
काल पर पहरे लगे हैं काल के कुछ इस तरह,
जिंदगी बेबस हुई है दीखती बेजार।(२)
फूल खुद माली खिलाकर दीखता मजबूर,
बेबसी में ही फंसा है आज ये संसार।(३)
है बहुत ही वेदनामय आज ये माहौल,
अब निभाते लोग बस हैं झूठ का आभार।(४)
दूर से ही जोड़ते हैं हाथ अब तो लोग,
औपचारिकता भरी बस है दिखावा प्यार।(५)
है अंधेरे में अटल पर कह रहा बेबाक,
जूझते इस कारवां को अब मिले आधार।।(६)
?अटल मुरादाबादी ?