मुल्क़ आज़ाद चाहता हूँ
वज़्न
2122– 1212– 22( 112)
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आज रब —से ये मांगता हूँ मैं
मुल्क़ आज़ाद चाहता हूँ मैं
बात सच्ची ——ये बोलता हूँ मैं
तेरे ———-बारे में सोचता हूँ मैं
प्यार अख़लाक़ —-जिंदगी मेरी
नफ़रतों ——से तो भागता हूँ मैं
चार सूं अम्न —–की इबादत हो
ख़ाब दिल —-मे ये पालता हूँ मैं
हसरतों के —–शज़र सभी सूखे
अब तो कांटें ——-बटोरता हूँ मैं
ढूँढ पाऊं न—– जिंदगी के हल
क्या ख़यालों –से खोख़ला हूँ मैं
खो गईं जो —–बहार गुलशन से
आज सहरा —–में खोजता हूँ मैं
कोशिशें कर न तू मिटाने की
देख ले एक आइना हूँ मैं
ग़म की आतिश मुझे जलाती है
राह बारिश की देखता हूँ मैं
कोई तो मुझको ढूंढ़ कर लाओ
एक मुद्दत से गुमशुदा हूँ मैं
एक दिन देश की करूं ख़िदमत
ख़ाब दिल में ये पालता हूँ मैं
तोड़ मत देना तुम कभी “प्रीतम”
एक नाजुक सा आइना हूँ मैं