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2 Sep 2017 · 1 min read

“मुझे सावन रुलाता है” (गीत)

विरह गीत
***********
बरसता भीगता मौसम,
अगन तन में लगाता है।
करूँ क्या तुम बताओ मैं,
मुझे सावन रुलाता है।

दिवा जब अंक में जाता,
निशा घूँघट उठाती है।
रजत सी चाँदनी लोरी,
सुनाती संग आती है।
चमकता नूर चंदा का-
सनम पल भर न भाता है।
करूँ क्या अब बताओ तुम,
मुझे सावन रुलाता है।।

मचलती धार सागर की,
उमंगें साथ लाती है।
किनारे जब अलग देखूँ,
प्रीत आँसू बहाती है।
मलय का मंद झोंखा भी-
याद तेरी दिलाता है।
करूँ क्या अब बताओ तुम,
मुझे सावन रुलाता है।।

अधूरी आस जब देखूँ,
व्यथाएँ मौन की सहती।
तड़प कर पीर की सरगम,
कहानी दर्द की कहती।
भरोसा उठ गया खुद से-
नहीं कुछ रास आता है।
करूँ क्या अब बताओ तुम,
मुझे सावन रुलाता है।।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज,वाराणसी।(मो.-9839664017)

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 2 Comments · 680 Views
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