मुझे माँ याद आई है।
किसी उलझन में’ उलझा हूँ, नहीं तो चोट खाई है।
कही कुछ दर्द है शायद, मुझे माँ याद आई है।
(१)
बिना कारण भला ये आज कैसे अधमरा होगा,
थका होगा नहीं तो दूसरा फिर माजरा होगा,
चढ़ी साँसे, नयन गीले,नसेें भी तनतनाइ है,
बदन बीमार है शायद, मुझे माँ याद आई है।
(२)
लगे होंगे कही से आज घर मेहमान के फेरे,
किसी त्यौहार के कारण नहीं तो गाँव मे मेरे,
खड़ी होगी लिए जो हाथ मे लड्डू मिठाई को।
मुझे माँ याद की शायद, मुझे माँ याद आई है।
(३)
सहेजा बालपन मेरा सवांरा जो जवानी को,
मुक्कमल कर दिया जिसने अधूरी हर कहानी को,
वही ममता कहीं छाती में’ फिर से कसमसाई है।
मुझे माँ याद की शायद , मुझे माँ याद आई है।