मुझे मत मारो ( कविता) { मादा पशु-पक्षियों की वेदना }
मुझे मत मारो ,
कृपया मुझे मत मारो ,
तुम्हें तुम्हारे बच्चों का वास्ता ,
मेरे भी घर में हैं मेरे छोटे-छोटे बच्चे ,
वोह मेरा रास्ता देख रहे होंगे,
”कब आएगी हमारी माँ ”
दिल में सोच रहे होंगे,
तुम्हारे बच्चों के साथ है तुम्हारा पूरा परिवार ,
मेरे मासूम,अबोध ,बेजुबान बच्चों के साथ कौन है?
उनका कौन सहारा है मेरे बिना?
वोह बहुत भूखे होंगे ,
अतिशय भूख से बिलख रहे होंगे.
उनकी भूख कौन मिटाए मेरे बिना?
उनकी व्याकुल नन्ही -नन्ही आँखें ,
मेरी आस लिए राहों में लगी होंगी.
मेरे बिना वोह कैसे जियेंगे ?
तड़प-तड़प कर मर जायेंगे बेचारे ,
मुझे जाने दो,
मेरी जान बख्श दो .
अपनी पशुता त्यागकर ,
अपने मानव होने का धर्म निभाओ ,
मानव हो तुम ,
मानवता धर्म निभाओ.
दया करो मुझपर ,
अपने घर जाने दो.
अच्छा चलो ! यह न सही ,
यदि तुम फिर भी नहीं मानते ,
तुम ह्रदय से बहुत कठोर हो ,
प्रतीत तो यह होता है के तुम्हारे सीने में,
ह्रदय है ही नहीं.
मगर मेरे पास तो ह्रदय है.
तो एक बार तो घर जाने दो मुझे ,
मैने अपने बच्चों को आखरी बार गले लगा लूँ,
उनको जी भर कर दूध पिला दूँ,
उन्हें दाना खिला आयुं .
तत्पश्चात में वापिस आ जायुंगी.
आखरी बार जी भर कर देख लेने दो मुझे !
मेरा वायदा है मैं वापिस आ जायुंगी ,
अपने बच्चों की कसम खाकर कहती हूँ ,
अपने बच्चों को भगवान् भरोसे छोड़कर,
मैं तुम्हारे हाथों ( दारुण ) मृत्यु को
प्राप्त हो जायुंगी .
बस ! एक बार तो मुझे स्वतंत्र कर दो,
मिल ना लूँ जब तक अपने बच्चों से ,
तब तक मुझे मत मारो.
मुझे मत मारो !!
कृपया मुझे मत मारो !!