Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Mar 2020 · 1 min read

मुझे बदनाम रहने दो

जरा ठहरो कि राह-ए-इश्क में नाकाम रहने दो
अभी जीने की हसरत है अभी गुमनाम रहने दो

मुझे भी गौर से देखेंगे सारे लोग महफिल में
मिरे हाथों में अपनी चाहतों का जाम रहने दो

सुबह के सूर्य की किरनें मुबारक हो तुम्हें लेकिन
मिरी बाँहों में यादों की सुहानी शाम रहने दो

तुम्हारा और मेरा नाम लेंगे लोग शिद्दत से
तुम अपने सर पे मेरे कत्ल का इल्जाम रहने दो

करेंगे लोग मेरी बात मेरे बाद भी ‘संजय’
जमाने की निगाहों में मुझे बदनाम रहने दो

385 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
इंसानियत
इंसानियत
साहित्य गौरव
🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹
🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹
Dr Shweta sood
छिपकली बन रात को जो, मस्त कीड़े खा रहे हैं ।
छिपकली बन रात को जो, मस्त कीड़े खा रहे हैं ।
सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर’
मेरा बचपन
मेरा बचपन
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
धरा स्वर्ण होइ जाय
धरा स्वर्ण होइ जाय
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
2464.पूर्णिका
2464.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
"ऐसा मंजर होगा"
पंकज कुमार कर्ण
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
भारत सनातन का देश है।
भारत सनातन का देश है।
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
"परिपक्वता"
Dr Meenu Poonia
सृजन और पीड़ा
सृजन और पीड़ा
Shweta Soni
बंदरा (बुंदेली बाल कविता)
बंदरा (बुंदेली बाल कविता)
Dr. Reetesh Kumar Khare डॉ रीतेश कुमार खरे
कोशिश करना आगे बढ़ना
कोशिश करना आगे बढ़ना
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ये जंग जो कर्बला में बादे रसूल थी
ये जंग जो कर्बला में बादे रसूल थी
shabina. Naaz
"मानो या न मानो"
Dr. Kishan tandon kranti
दोहे एकादश...
दोहे एकादश...
डॉ.सीमा अग्रवाल
नारी तेरे रूप अनेक
नारी तेरे रूप अनेक
विजय कुमार अग्रवाल
*पतंग (बाल कविता)*
*पतंग (बाल कविता)*
Ravi Prakash
वो मेरे बिन बताए सब सुन लेती
वो मेरे बिन बताए सब सुन लेती
Keshav kishor Kumar
गहरे ध्यान में चले गए हैं,पूछताछ से बचकर।
गहरे ध्यान में चले गए हैं,पूछताछ से बचकर।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
अधिकार और पशुवत विचार
अधिकार और पशुवत विचार
ओंकार मिश्र
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी
ग़ज़ल/नज़्म - मुझे दुश्मनों की गलियों में रहना पसन्द आता है
ग़ज़ल/नज़्म - मुझे दुश्मनों की गलियों में रहना पसन्द आता है
अनिल कुमार
ख़त आया तो यूँ लगता था,
ख़त आया तो यूँ लगता था,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
नहीं चाहता मैं किसी को साथी अपना बनाना
नहीं चाहता मैं किसी को साथी अपना बनाना
gurudeenverma198
दया के सागरः लोककवि रामचरन गुप्त +रमेशराज
दया के सागरः लोककवि रामचरन गुप्त +रमेशराज
कवि रमेशराज
अधूरा इश्क़
अधूरा इश्क़
Dr. Mulla Adam Ali
वो एक विभा..
वो एक विभा..
Parvat Singh Rajput
ख़ुद के होते हुए भी
ख़ुद के होते हुए भी
Dr fauzia Naseem shad
***
*** " पापा जी उन्हें भी कुछ समझाओ न...! " ***
VEDANTA PATEL
Loading...