मुझे चाहिए आज़ादी (कविता)
दिन और रात ,
सुबह और शाम ,
हर पल बस मेरी ,
एक ही चाह ,
एक ही अरमान ,
एक ही तमन्ना ,
एक ही आरज़ू ,
दिल मैं सुलगती है ,
एक आग,
एक पीड़ा,
संताप,
दर्द ,
घुटन ,
तड़प ,बेचैनी ,
की कोई मुझे दे दे ,
ज़रा सी आज़ादी .
ढोंगी पाखंडियों से ,
भ्रष्टाचारियों से ,
इंसान के रूप मे छुपे खूंखार
भेड़ियों से ,
देशद्रोहियों से ,
दोगले ,लालची, स्वार्थी ,
राजनेताओं से ,
और बेशर्म, कुसंस्कारी बेलगाम ज़बान
चलने वाली नई पीड़ी से.
मेरे रग-रग में जो दीमक बनकर मुझे ,
धीरे -धीरे, तड़पा -तड़पा कर मार रही है ,
मानव होकर मानवता से भटकी हुई ,
मानव जाति से मुझे आज़ादी चाहिए .