मुझमें भी इक जंगल है
मुझमें भी इक जंगल है,
लहलहा रहे, अनगिनत पेड़,
कुछ छोटे,कुछ बड़े,
कुछ जंगली जो स्वछंद उगे और बड़े,
कुछ आशाओं के फल लिए ताके आसमान को खड़े,
इच्छा रूपी झाड़िया भी है, स्वंय प्रफुलित-पल्वित
कांटेदार कुछ तो कुछ कोमलता धारण किये हुए,
कहीं है फूल सुखों के तो कहीं सूखे झाड़ है निराशा लिए,
कहीं तपती धूप तो कहीं ठंडी शीतलता लिए,
सुप्त धरा सा जंगल मेरा,
है सब कुछ संभाले हुए, है सब कुछ संभाले हुए !!!