मुझको मिटाना चाहता है
मुझको मिटाना चाहता है
यही तो ज़माना चाहता है
आँसुओ को पलकों में छुपाके
वो फिर मुस्कुराना चाहता है
यह हक़ीक़त है या कोई फ़रेब
दुश्मन अब दोस्ताना चाहता है
रोटी चुराकर अमीर नही होगा
मुफ़लिस भूख मिटाना चाहता है
आंसू बन के आँखो में उतर आया है
ग़म दिल से निकल जाना चाहता है
बड़ी हैरत में है ‘अर्श’ ये सुनकर
समंदर किसी की प्यास बुझाना चाहता है